चौपाई
सर्वप्रथम 'सचि पाटिसानि इसानि' (इन्द्र के पिता कश्यप की भूमि) का जाप करें।
अंत में 'मथनी' शब्द लिखें।
इसे सभी बूंदों का नाम समझो।
सर्वप्रथम “शची पटेशानी ईशानी” शब्द बोलकर अंत में “मथानी” शब्द जोड़ें तथा तुपक के सभी नाम जानें।१२११।
अधिचोल
(पहले) 'सकन्द्रन (इंद्र) ततानि एसनि' (शब्द) का पाठ करें।
इसके अंत में 'मथानी' शब्द रखें।
(इसे) चतुर लोगों के नाम तुपक के रूप में लें।
“सक्रन्दनतातानि ईशानि” शब्द बोलकर अंत में “मथानि” शब्द जोड़ दें तथा चतुराईपूर्वक तथा निश्छलतापूर्वक तुपक के नामों को पहचान लें।1212.
सर्वप्रथम 'कौशकेसानि इस्नि' (भगवान इन्द्र की सेना) का पाठ करें।
इसके अंत में 'मथानी' शब्द जोड़ें।
(यह) सबसे चतुर लोगो है! ड्रॉप का नाम समझिए।
‘कौशकेशनि ईशानी’ शब्द कहकर अंत में ‘मथानी’ शब्द लगा दे तथा तुपक के सभी नामों को सत्य मानकर जान ले।।१२१३।।
चौपाई
पहले 'बसवेसनी' (भगवान इन्द्र की भूमि) बोलो।
इसके अंत में 'अरिनी' शब्द जोड़ें।
इसे हृदय में सभी के नाम की तरह स्मरण करो।
‘वासव-ईशानी’ शब्द बोलकर अंत में ‘आरिणी’ शब्द जोड़ दें और तुपक के नाम बिना किसी संकोच के जान लें ।।१२१४।।
अधिचोल
सबसे पहले 'बरहा (इंद्र) इसिनी अरिणी' का पाठ करें।
इसे मन में सभी बूंदों के नाम के रूप में जानो।
संशय त्यागकर निसंग का उच्चारण करो।
तू ‘वरहाङ्ङाणि अरिनि’ शब्द कहकर मन में तुपक के सब नाम बोल और मैं सत्य कहता हूँ, इन नामों का निःसंकोच प्रयोग कर।।१२१५।।
दोहरा
सर्वप्रथम 'माघवेसननि इसराणी' शब्द का जाप करें।
‘मथ्वेषानि ईश्वरनि’ शब्दों के उच्चारण से तुपक नाम शुद्ध बनते हैं।1216.
(पहले) 'मातलेसनी' (मतल के स्वामी इन्द्र की भूमि) शब्द बोलें, (फिर) अंत में 'एस्नी मथानी' (शब्द) बोलें।
‘मातुलेशानि ईशानि मथानि’ शब्दों के उच्चारण से तुपक नाम बनते हैं, जिनका कवि सुधार कर सकता है।।१२१७।।
चौपाई
सबसे पहले 'जिसन (इंद्र) एसनी' (शब्द) का पाठ करें।
(फिर) अंत में 'इसनी मथानी' (शब्द) कहें।
इसे सभी बूंदों का नाम समझो।
सर्वप्रथम ‘जिसनेशानी’ शब्द बोलकर अंत में ‘ईशानी मथानी’ शब्द जोड़ें तथा इच्छित स्थान पर प्रयोग करने के लिए तुपक के नाम जानें।1218.
अधिचोल
सर्वप्रथम 'पुरन्द्र (इन्द्र) इस्नि' शब्द का उच्चारण करें।
फिर 'इसनी मथानी' शब्द जोड़ें।
अपने मन में एक बूँद का नाम समझो।
“दुरन्दर-ईशानी” शब्द कहकर “ईशानी मथानी” शब्द जोड़ दे तथा तुपक के सभी नामों को बिना किसी संकोच के बोलकर जान ले ।।१२१९।।
सबसे पहले 'बज्र धरिस्नि अरिणी' (शब्द) का उच्चारण करें।
इसे उस सर्वज्ञ बूँद का नाम समझो।
संका का त्याग करें और निसंग यह शब्द कहें।
सर्वप्रथम ‘वज्रभरेशानि आरिणी’ शब्दों का उच्चारण करके, विचारपूर्वक मन में तुपक के नामों को जानकर, किसी कवि की परवाह किए बिना उनका प्रयोग करें।।१२२०।।
सबसे पहले 'तुरखद (इंद्र) पितनी इसानी' श्लोक का पाठ करें।
इसके अंत में 'अरिनी' शब्द रखें।
इसे हृदय में सभी के नाम की तरह स्मरण करो।
“तुखार पितानि ईशानी” शब्द बोलते हुए अंत में “अरिणी” शब्द जोड़ें और मन में तुपक के सभी नामों को पहचानें।१२२१।
पहले 'इन्द्राणी इन्द्राणी' शब्द बोलें।