डिन उधार लेना जो कि आदतन है।
वह दीन-दुखियों के उद्धार के लिये कार्य करता है और यदि कोई किसी भी उद्देश्य से उसे पुकारता है तो वह उसकी बात स्वीकार करता है।7
वह निष्कलंक और अविनाशी तेज वाला है।
जो निष्कलंक है, जो नित्य महिमावान है, जो स्थिर आसन पर विराजमान है और जिसमें अनन्त गुण हैं, उसे देखकर शत्रु और मित्र सभी मोहित हो जाते हैं।
जिसमें असंख्य गुण सुशोभित हैं।
(उसे) देखकर शत्रु और मित्र दोनों ही ललचा जाते हैं। 72.
वह शत्रु और मित्र को समान मानता है
वह शत्रुओं और मित्रों को समान रूप से समझता है, तथा प्रशंसा और निन्दा को भी समान रूप से समझता है।
(जिसका) आसन दृढ़ और रूप अचल है,
वह स्थिर आसन पर विराजमान है, वह परम सुन्दर और निष्कलंक है, वह प्रभुओं का प्रभु है। 73.
जिनकी जीभ अमृत के समान बोलती है, उनके हाथ में तलवार सुशोभित होती है।
उसकी जीभ अमृत बरसा रही है
वह शत्रुता रहित तथा शुद्ध प्रकाश है।
समस्त देवता और दानव उन पर मोहित हैं। वे शत्रुता से रहित और ज्योतिस्वरूप हैं। उनका शरीर अविनाशी है और सदैव निष्पक्ष रहता है। 74.
(उसका) प्रकाश आरम्भ से अन्त तक एक-सा है।
उसकी महिमा आदि और अन्त में एक सी रहती है और वह सभी प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न होती है।
जिसका शरीर बहुत सुन्दर है।
उसके शरीर में सभी सुन्दरताएँ विद्यमान हैं और उसकी सुन्दरता को देखकर यक्ष और गन्धर्व मोहित हो जाते हैं।
(उसका) शरीर नष्ट नहीं होता और अनुभव से प्रकाशित (सुत:प्रकाश) होता है।
उसके अंग अविनाशी हैं
(उसने) जल में बहुत से जीव-जन्तु बनाए हैं,
वह प्रभु ज्ञानस्वरूप है, क्योंकि उसकी समाधि के कारण ही सारे प्राणी सम्पूर्ण जगत् में फैले हुए हैं। उसने जल में तथा मैदान में बहुत से प्राणियों की रचना की है और अन्त में वही सबको अपने स्वरूप में लीन कर देता है। ७६।
जिन्हें समय का जाल छू भी नहीं पाया है।
मृत्यु और पाप कभी भी उसे छू नहीं पाए
(जिसका) प्रकाश निराकार है और जिसका शरीर तत्वहीन है।
उस अविनाशी तेज और शरीर का स्वामी सदैव एक समान रहता है।
इस प्रकार का सतोत्र दत्त ने गाया है।
इस प्रकार दत्त ने स्तुति पढ़ी और इस स्तुति से सारे पाप भाग गये।
कौन उसकी अपार महिमा का वर्णन कर सकता है?
उसकी अनंत महानता का वर्णन कौन कर सकता है? इसलिए मैंने उसे संक्षेप में कहा है।
यदि हम सम्पूर्ण पृथ्वी ('कासिपी') को एक पत्र (कागज़) बनायें।
यदि पूरी धरती कागज बन जाए और गणेश गौरवशाली लेखक हों
सारे सागर स्याही बन जाएं और सारे पेड़ कलम बन जाएं,
सम्पूर्ण समुद्र स्याही बन जाएँ, सम्पूर्ण वन लेखनी बन जाएँ और शेषनाग अपने हजार मुखों से भगवान् का वर्णन करें, तब भी भगवान् का रहस्य नहीं समझा जा सकता।।७९।।
यदि ब्रह्मा बैठकर स्तुति करें,
यदि ब्रह्मा भी अपनी महिमा का उच्चारण करें, तो भी उनका तेज समझ में नहीं आएगा।
(यदि) शेषनाग हजार मुखों से बोलता रहे,
यदि शेषनाग भी अपने हजार मुखों से उनका नाम उच्चारण करें, तो भी उनका अन्त नहीं जाना जा सकता।80.
(उसका) सनक और सनातन रात-दिन जप करते हैं,
यदि सनक, सुनन्दन आदि भी रात-दिन निरन्तर उनका स्मरण करते रहें, तो भी उनकी महिमा का वर्णन नहीं हो सकता।
चतुर्मुख ब्रह्मा ने वेदों का उच्चारण किया,
ब्रह्मा ने चारों वेदों की रचना की, परन्तु उनका चिन्तन करने पर वे उन्हें “नेति, नेति” (यह नहीं, यह नहीं) भी कहते हैं।81.
शिव ने हजारों वर्षों तक योग किया
शिव ने हजारों वर्षों तक योग का अभ्यास किया
(उसने) महान कार्य किये,
वे घर-बार और समस्त आसक्ति छोड़कर वन में रहने लगे, अनेक प्रकार से योगाभ्यास भी किया, फिर भी वे अपना अन्त नहीं जान सके।।82।।
जिसका स्वरूप तो एक है, लेकिन प्रकाशित अनेक प्रकार से हो रहा है।
उनके एक ही स्वरूप से अनेक लोक प्रकट होते हैं और जो प्रभु दिन-रात एकरस रहते हैं, उनकी प्रभा का वर्णन नहीं किया जा सकता।