शिव की यह दशा सारी सेना ने देखी।
जब सेना ने शिवा की यह दशा देखी, तब शिवा के पुत्र गणेश ने हाथ में भाला ले लिया।1510।
जब (गणेशजी ने) हाथ में लिया भाला
फिर राजा के सामने खड़ा हुआ
और हाथ की (पूरी) ताकत से राजा पर (शक्ति) चलाई।
वह शक्ति (भाला) हाथ में लेकर राजा के सामने आया और हाथ की पूरी ताकत से उसे राजा की ओर इस प्रकार फेंका कि मानो वह भाला न होकर मृत्यु हो।1511.
स्वय्या
आते ही राजा ने भाला रोककर शत्रु के हृदय में तीक्ष्ण बाण मारा।
उस बाण ने गणेश के वाहन पर आक्रमण किया।
एक बाण गणेशजी के माथे पर लगा, जो टेढ़ा होकर लगा। (वह बाण इस प्रकार) सुशोभित हुआ,
दूसरा बाण गणेश के माथे पर तिरछा लगा और ऐसा प्रतीत हुआ जैसे हाथी के माथे में लगा बाण समान हो।1512.
सतर्क होकर अपने बैल पर सवार होकर शिव ने धनुष उठाया और बाण चलाया।
इधर, होश में आकर शिवजी ने अपने वाहन पर सवार होकर अपने धनुष से एक अत्यन्त तीक्ष्ण बाण छोड़ा और उसने राजा के हृदय में मारा।
शिव यह सोचकर प्रसन्न हुए कि राजा मारा गया, किन्तु राजा इस बाण के प्रभाव से तनिक भी भयभीत नहीं हुआ।
राजा ने अपने तरकश से तीर निकाला और धनुष खींचा।1513.
दोहरा
तब उस राजा ने शत्रु को मारने का विचार किया और एक बाण उसके कान तक खींच लिया
राजा ने शिव को लक्ष्य बनाकर अपना धनुष उसके कान तक खींचा और उसे मार डालने के लिए उसके हृदय की ओर बाण छोड़ा।1514.
चौपाई
जब उसने शिव की छाती में बाण मारा
जब उसने शिव के हृदय की ओर बाण छोड़ा और उसी समय उस महाबली ने शिव की सेना की ओर देखा
(तब उस समय) कार्तिके ने अपनी सेना के साथ आक्रमण किया
कार्तिकेय अपनी सेना सहित तेजी से आ रहे थे और गणेश के गण अत्यंत क्रोधित हो रहे थे।
स्वय्या
उन दोनों को आते देख राजा मन ही मन बहुत क्रोधित हुआ।
उन दोनों को आते देख राजा मन में अत्यन्त क्रोधित हो उठे और अपनी भुजाओं के बल से उनके वाहन पर बाण मारा॥
उन्होंने तुरन्त ही गणों की सेना को यम के घर भेज दिया।
राजा को कार्तिकेय की ओर बढ़ते देख गणेश भी युद्ध भूमि छोड़कर भाग गये।1516.
जब शिवजी का दल पराजित हो गया (तब) राजा प्रसन्न हुआ (और बोला) हे!
शिवजी की सेना को नष्ट करके भागने पर विवश कर देने वाला राजा मन में प्रसन्न हुआ और ऊंचे स्वर में बोला, “तुम सब लोग डरकर क्यों भाग रहे हो?”
(कवि) श्याम कहते हैं, उस समय खड़ग सिंह ने हाथ में शंख बजाया
तब खड़ग सिंह ने अपना शंख हाथ में लेकर बजाया और वे यम के रूप में प्रकट हुए, तथा अपने हथियार लेकर युद्धक्षेत्र में आ गए।1517.
जब उसकी ललकार सुनाई दी, तब हाथ में तलवारें लेकर योद्धा पुनः लड़ने के लिए आ गए।
यद्यपि उन्हें शर्म अवश्य आ रही थी, किन्तु अब वे दृढ़तापूर्वक तथा निर्भयता से खड़े हो गए और सबने मिलकर शंख बजाये
उन्होंने 'मारो, मारो' के नारे लगाते हुए चुनौती दी और कहा, 'हे राजन! तुमने बहुत लोगों को मार डाला है
अब हम तुम्हें नहीं छोड़ेंगे, हम तुम्हें मार डालेंगे,’’ यह कहते हुए उन्होंने तीरों की बौछार कर दी।1518.
जब अंतिम प्रहार हुआ तो राजा ने अपने हथियार उठा लिये।
जब भयंकर विनाश होने लगा, तब राजा ने अपने शस्त्र उठा लिए और हाथों में खड्ग, गदा, बरछी, कुल्हाड़ी और तलवार लेकर शत्रुओं को ललकारा।
धनुष-बाण हाथ में लेकर इधर-उधर देखते हुए उसने अनेक शत्रुओं को मार गिराया।
राजा के साथ लड़ने वाले योद्धाओं के चेहरे लाल हो गये और अंततः वे सभी पराजित हो गये।1519.
अपने हाथों में धनुष-बाण लेकर शिव अत्यंत क्रोधित हो गए।
उसने राजा को मारने के इरादे से अपनी गाड़ी उसकी ओर बढ़ा दी, उसने राजा को जोर से चिल्लाकर कहा
'मैं अभी तुझे मार डालूँगा', ऐसा कहकर उसने अपने शंख की भयंकर ध्वनि निकाली।
ऐसा प्रतीत हो रहा था कि प्रलय के दिन बादल गरज रहे थे।1520.
वह भयंकर ध्वनि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में फैल गई और इंद्र भी उसे सुनकर आश्चर्यचकित हो गए।
इस ध्वनि की प्रतिध्वनि सातों समुद्रों, सरिताओं, तालाबों और सुमेरु पर्वत आदि में गूँज उठी।
यह ध्वनि सुनकर शेषनाग भी काँप उठे, उन्हें लगा कि मानो सभी चौदह लोक, सभी लोकों के प्राणी काँप उठे हों,
यह आवाज सुनकर सभी लोग चकित हो गए, किन्तु राजा खड़गसिंह भयभीत नहीं हुए।1521.