तुमने कौन सा कुकर्म किया है?
तुम बेशर्मी से क्यों जी रहे हो?
मेरे वहां जाना होगा
तुम्हें लज्जा कैसे खो गई? तुमने ऐसा बुरा काम किया है; अब मैं वहीं जाऊँगा जहाँ राम गए हैं।'276.
कुसमा बच्चितार छंद
वह (भरत) राम को वनवासी के रूप में जानते थे
वन में रहने वाले लोग रघुवीर राम को जानते हैं और उनके दुख-सुख को अपना दुख-सुख मानते हैं।
(वह कहने लगा-) अब मैं पसलियों की खाल का कवच पहनकर बनूँगा।
अब मैं वृक्ष की छाल पहनकर वन में जाऊँगा और मेढ़े के साथ वन के फल खाऊँगा। २७७।
(भरत) ऐसे शब्द कहते हुए घर से बाहर चले गये,
यह कहकर भरत घर से चले गए और आभूषण तोड़कर फेंक दिए तथा छाल का छिलका पहन लिया।
राजा दशरथ को दफनाने के बाद, (भरत) अयोध्या नगरी छोड़कर चले गए
उन्होंने राजा दशरथ का अंतिम संस्कार किया और अवध छोड़कर राम के चरणों में रहने लगे।
जलती हुई ज़मीन देखकर वह सब कुछ छोड़कर आगे चल पड़ा
भरत की विशाल सेना को देखकर वनवासी ऋषियों के साथ उस स्थान पर पहुँचे जहाँ राम ठहरे हुए थे।
सेना को आते देखकर राम ने समझा कि शत्रु सेना आ गई है।
प्रबल सेना देखकर राम ने सोचा कि कुछ अत्याचारी आक्रमण करने आये हैं, इसलिये उसने धनुष-बाण हाथ में ले लिये।
जब राम ने धनुष उठाया और पूरी ताकत से बाण चलाया
राम ने धनुष हाथ में लेकर बाण छोड़ना आरम्भ किया और यह देखकर इन्द्र, सूर्य आदि देवता भय से काँप उठे।
हर घर में अच्छे लोग और देवता आनन्दित थे,
यह देखकर वनवासी तो अपने निवासस्थान में प्रसन्न हुए, किन्तु अमरपुर के देवता यह युद्ध देखकर चिन्तित हो गये।
जब भरत ने अपने मन में यह बात जान ली
तब भरत ने मन में सोचा कि राम तो युद्ध आरम्भ करने की सोच रहे हैं,
(वे) नीचे की सेना छोड़कर अकेले बाहर आ गए
अतः वह अपनी सारी शक्ति छोड़कर अकेला ही आगे चला गया और राम को देखकर उसके सारे कष्ट दूर हो गये।281.
जब शिरोमणि ने राम को अपनी आँखों से देखा
जब भरत ने अपनी आँखों से पराक्रमी राम को देखा, तब अपनी सारी कामनाओं को त्यागकर भरत ने उन्हें दण्डवत प्रणाम किया।
यह स्थिति देखकर रामचन्द्र (इस वस्तु) को जाने को कहते हैं।
यह देखकर राम को ज्ञात हो गया कि यह भरत ही अपनी राजधानी छोड़कर आया है।
भरत को पहचानकर और शत्रुघ्न (ऋप) को देखकर।
शत्रुघ्न और भरत को देखकर राम ने उन्हें पहचान लिया और राम और लक्ष्मण के मन में आया कि राजा दशरथ इस संसार से चले गए हैं
राम और लक्ष्मण भी (धनुष) बाण को छोड़कर
उन्होंने अपना बाण त्याग दिया और अपना क्रोध मिटाकर पर्वत से नीचे उतर आये।283.
दल-बल (चारों भाई) विदा होकर एक-दूसरे से गले मिले और रोने लगे (और कहने लगे-)
सेना को एक तरफ़ छोड़कर वे एक दूसरे से गले मिले और रोने लगे। विधाता ने उन्हें इतना कष्ट दिया था कि वे सब सुख-सुविधाएँ खो बैठे थे।
(भरत ने कहा-) हे मेरे (प्रभु) रघुबर! अब हम घर चलें॥
भरत बोले - हे रघुवीर! आप हठ छोड़कर अपने घर लौट जाइये, क्योंकि इसी कारण सारी प्रजा आपके चरणों पर गिर पड़ी थी।
भरत को संबोधित राम का भाषण :
कंठ आभूषण छंद
अरे भारत कुमार! जिद मत करो
हे भारत! हठ मत करो, अपने घर जाओ, यहाँ रहकर मुझे और अधिक दुःख मत दो।
राजा (दशरथ) ने जो कार्य हमें बताया है, उसे हमने स्वीकार कर लिया है।
मुझे जो भी आज्ञा दी गई है, मैं उसी के अनुसार कार्य कर रहा हूँ और तदनुसार तेरह वर्ष तक वन में रहूँगा (और चौदहवें वर्ष में वापस आ जाऊँगा)।285.
तेरह वर्ष बीतने के बाद (हम) फिर आएँगे,
मैं तेरह वर्ष बाद वापस आऊंगा और एक छत्र के नीचे सिंहासन पर बैठूंगा।
(तुम) घर जाओ और मेरे सिख बन जाओ (क्योंकि)
���मेरी बात मान कर घर लौट जाओ, वहां तुम्हारी माताएं रो रही होंगी।���286.
भरत का राम को सम्बोधित भाषण :