'अब तुम मेरी औरत बन जाओ,' उसने उससे कहा।(९)
दोहिरा
'मेरा बेटा और पति मर चुके हैं; पहले मुझे उनका अंतिम संस्कार करना होगा।
'इसके बाद मैं तुम्हारे घर आऊँगा और तुम्हारे साथ रहूँगा।'(10)
चौपाई
सबसे पहले उसने अपने बेटे को चिता में रखा,
पहले उसने अपने बेटे का अंतिम संस्कार किया और फिर अपने पति को चिता पर लिटा दिया।
फिर मुगल को गले लगाते हुए,
फिर उसने मुगल को पकड़ लिया और पानी में कूदकर उसे भी जला दिया।(11)
दोहिरा
अपने बेटे और पति का अंतिम संस्कार करने के बाद उसने मुगल को जलाकर मार डाला था,
फिर उसने आत्मदाह कर लिया और इस प्रकार एक चतुराईपूर्ण ढोंग रचा।
शुभ चरित्र का 126वाँ दृष्टान्त - राजा और मंत्री का वार्तालाप, आशीर्वाद सहित सम्पन्न। (126)(2477)
चौपाई
वहाँ वीरदत्त नाम का एक चांडाल रहता था।
वहां बीर दत्त नाम का एक निम्न कुल का व्यक्ति रहता था, जो बड़ा चोर माना जाता था।
खान खविन जो वहाँ आता है,
जब भी कोई शाह उसके पास आता तो वह उसे लूट लेता।(1)
जो भी सड़क पर किसी को आता देखता है,
यदि कोई भी व्यक्ति रास्ता भटककर सामने आ जाता तो वह तुरन्त उसे बुला लेता।
यदि कोई शत्रु धनुष खींचकर बाण चलाए
और यदि कोई शत्रु उस पर तीर चलाता तो वह उसे खंजर से काट डालता।(2)
दोहिरा
वह रात होते ही हमला कर देता था और
किसी की भी जान नहीं बख्शेंगे.(3)
चौपाई
(एक दिन) रतन सिंह उधर से गुजरे।
एक बार रतन सिंह नामक व्यक्ति उस रास्ते से गुजरा और चोर ने उसे देख लिया।
उससे कहा, या तो अपने कपड़े उतारो,
'या तो तुम अपने कपड़े उतार दो या फिर धनुष-बाण लेकर लड़ने के लिए तैयार हो जाओ,' (चोर ने उससे कहा)
(रतन सिंह ने धनुष संभाला) रतन सिंह जो तीर चलाते थे,
जब रतन सिंह ने तीर चलाया तो उसने खंजर से उसे काट दिया।
(जब उन्होंने) 59 तीर छोड़े, तो उन्होंने कहा
जब उसने उनसठ बाण चलाये तो उसने कहा, 'अब मेरे तरकश में केवल एक बाण बचा है।(5)
दोहिरा
'सुनो, चोर! मैं तुम्हें यह स्पष्ट करना चाहता हूँ,
'जब भी मैं यह तीर चलाता हूँ, मेरा निशाना कभी चूकता नहीं।(6)
चौपाई
जितने तीर मैंने तुम पर चलाये,
'अब तक मैंने जितने भी बाण चलाये हैं, तुमने उन्हें काट दिया है।
अब मैं मन से आपका गुलाम हो गया हूं।
'मैं आपकी कुशलता स्वीकार करता हूँ। अब आप जो कहेंगे, मैं आपके लिए करूँगा।(7)
दोहिरा
'लेकिन मेरी एक महत्वाकांक्षा है जो मुझे आपके सामने अवश्य बतानी चाहिए,
'मैं किसी भी ऐसे व्यक्ति को मारना चाहता हूँ जिसे आप चाहें।'(8)
चौपाई
यह सुनकर चोर बहुत प्रसन्न हुआ।
अपनी सहमति जताने के लिए उसने अपना हाथ उठाया।
जैसे ही उसकी नज़र (हाथ की ओर) गई, उसने छेद कर दिया
उसके हृदय में तीर की तीखी धार चुभो दी।(९)
दोहिरा
रतन सिंह ने आँख मिचौली करते ही यह चाल चली थी,
और उसे तीर की तेज़ धार से मार डाला।(10)(1)
शुभ चरित्र का 127वाँ दृष्टान्त - राजा और मंत्री का वार्तालाप, आशीर्वाद सहित सम्पन्न। (127)(2487)
दोहिरा
मारवाड़ देश में राजा उगेर दत्त रहते थे।
क्रोध में वह अग्नि के समान प्रचण्ड था, परन्तु शांत होने पर जल के समान था।(1)
चौपाई
(एक बार) हमलावरों ने उसका पैसा लूट लिया।
जब शत्रु ने उनका धन (पशु) छीन लिया तो चरवाहे नगर में आये और शोर मचाने लगे।
(बदला लेने के लिए शहर में) खूब ढोल और नगाड़े बजने लगे
ढोल बजने लगे और बहुत से साहसी लोग अपने भाले और कटार लेकर बाहर आ गए।(2)
दोहिरा
दोनों ओर से युद्ध के नगाड़े बजने लगे और वीर योद्धा पूरे जोश में आ गए।
उनके सरपट दौड़ते घोड़ों ने हिरणों को भी नम्र बना दिया।(3)
भुजंग छंद
महान योद्धा क्रोध में दहाड़ा।
वीरों ने युद्ध में क्षत्रियों को देखकर गर्जना की और वे
(उन्होंने) भालों, बाणों और वज्रों से प्रहार किया।
वे एक दूसरे का सामना पत्थर जैसे कठोर भालों और बाणों से कर रहे थे। (4)
कितने घोड़े काटे गए हैं और कितने युद्ध में मारे गए हैं।
मृत्यु की घंटियाँ और घंटियाँ बजने लगी हैं।