नारद जी रुक्मणी के घर पहुंचे, जहां कृष्ण बैठे थे।
उसने ऋषि के चरण छुए।2302.
स्वय्या
जब नारद जी दूसरे घर गये तो उन्होंने वहां भी कृष्ण को देखा।
कृष्ण ने नारद को दूसरे घर में प्रवेश करते देखा और वे भी उस घर के अंदर चले गए, जहां ऋषि ने प्रसन्न होकर यह कहा,
"हे कृष्ण! मैं घर में चारों दिशाओं से आपकी ओर देख रही हूँ
नारद जी वास्तव में कृष्ण को भगवान मानते थे।
कहीं कृष्ण गाते नजर आते हैं तो कहीं हाथ में वीणा लेकर बजाते नजर आते हैं।
कहीं वह शराब पी रहे हैं तो कहीं बच्चों के साथ स्नेहपूर्वक खेलते नजर आ रहे हैं
कहीं पहलवानों से लड़ रहा है तो कहीं हाथ से गदा घुमा रहा है
इस प्रकार श्री कृष्ण इस अद्भुत लीला में लगे हुए हैं, इस लीला का रहस्य कोई नहीं समझ रहा है।
दोहरा
ऐसे चरित्र देखकर नारद श्रीकृष्ण के चरणों पर गिर पड़े।
इस प्रकार भगवान् का अद्भुत आचरण देखकर मुनि उनके चरणों से लिपट गए और फिर सम्पूर्ण जगत् का तमाशा देखने के लिए चले गए।2305।
अब जरासंध के वध का वर्णन शुरू होता है
स्वय्या
ध्यान के समय उठकर कृष्ण ने भगवान पर ध्यान केंद्रित किया
फिर सूर्योदय होने पर सूर्य को जल अर्पित किया और संध्या आदि करके मंत्र पढ़े तथा नियमित दिनचर्या के रूप में,
उन्होंने सप्तशती (देवी दुर्गा के सम्मान में सात सौ छंदों की एक कवि-कृती) का पाठ किया।
भला, यदि कृष्ण नियमित दैनिक कर्म नहीं करेंगे, तो फिर और कौन करेगा?
कृष्ण स्नान करके अच्छे वस्त्र पहनकर बाहर आते हैं और फिर उन पर इत्र लगाते हैं।
कृष्ण स्नान करके, सुगंध आदि लगाकर, वस्त्र पहनकर बाहर आते हैं और अपने सिंहासन पर बैठकर सुन्दर ढंग से न्याय आदि करते हैं।
सुखदेव के पिता नन्दलाल के पुत्र श्री कृष्ण को शास्त्रों की व्याख्या सुनाकर बहुत प्रसन्न करते थे।
तब तक एक दिन एक दूत ने आकर उससे जो कुछ कहा, कवि वही कह रहा है।2307।