तब हरि ने सभी देवताओं को बुलाया और अनुमति दी,
तब भगवान ने सभी देवताओं को बुलाया और उन्हें अपने सामने अवतार लेने का आदेश दिया।13.
जब देवताओं ने हरि की यह बात सुनी, तब उन्होंने कोटि-कोटि प्रणाम किया।
जब देवताओं ने यह सुना तो वे झुके और अपनी-अपनी पत्नियों सहित गोपों का नया रूप धारण कर लिया।14.
इस प्रकार सभी देवता (नये मनुष्य) रूप धारण कर पृथ्वी पर आये।
इस प्रकार सब देवताओं ने पृथ्वी पर नये-नये रूप धारण किये और अब मैं देवकी की कथा सुनाता हूँ।
विष्णु के अवतार लेने के निर्णय का वर्णन समाप्त।
अब देवकी के जन्म का वर्णन शुरू होता है
दोहरा
उग्रसैन की पुत्री जिसका नाम 'देवकी' था,
सोमवार को उग्रसैन की देवकी नामक पुत्री का जन्म हुआ।
देवकी के जन्म के वर्णन से संबंधित प्रथम अध्याय का समापन।
अब देवकी के लिए वर की खोज का वर्णन शुरू होता है।
दोहरा
जब वह एक सुन्दर युवती (देवकी) बन गयी,
जब वह सुन्दर लड़की विवाह योग्य हो गयी, तब राजा ने अपने आदमियों से उसके लिए उपयुक्त वर ढूंढने को कहा।17.
इस अवसर पर भेजा गया दूत बसुदेव के पास गया और उनसे मिला।
दूत भेजा गया, जिसने वासुदेव के चयन को स्वीकृति दी, जिनका मुख कामदेव के समान था, जो समस्त सुखों के धाम तथा विवेकशील बुद्धि के स्वामी थे।18.
कबित
वासुदेव की गोद में नारियल रखकर उन्हें आशीर्वाद दिया, उनके माथे पर तिलक लगाया
उसने उसकी स्तुति की, जो मिठाइयों से भी अधिक मीठी थी, जो भगवान को भी पसंद थी
घर आकर उसने घर की महिलाओं के सामने उसकी पूरी सराहना की
उनकी स्तुति सारे संसार में गायी गयी, जिसकी गूंज इस लोक में ही नहीं, बाईस-तीस अन्य लोकों में भी हुई।19.
दोहरा
इधर कंस और उधर वसुदेव ने विवाह की तैयारी कर ली थी।
संसार के सभी लोग आनन्द से भर गये और बाजे बजने लगे।20.
देवकी के विवाह का वर्णन
स्वय्या
ब्राह्मण आसन पर बैठ गए और बासुदेव को अपने पास ले गए।
ब्राह्मणों को आदरपूर्वक आसन प्रदान किए गए, जिन्होंने वैदिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए तथा केसर आदि का लेप करके वासुदेव के मस्तक पर लगाया।
(बासुदेव पर) पुष्प वर्षा की गई, पंचामृत, चावल और मंगलाचार से (बासुदेव की) प्रसन्नतापूर्वक पूजा की गई।
उन्होंने पुष्प और पंचामृत भी मिश्रित किया तथा स्तुति गीत गाए। इस अवसर पर मंत्रियों, कलाकारों और प्रतिभाशाली व्यक्तियों ने उनकी स्तुति की तथा पुरस्कार प्राप्त किए।21.
दोहरा
बसुदेव ने वर-वधू के सभी संस्कार संपन्न किये।
वसुदेव ने विवाह की सारी तैयारियां कर लीं और मथुरा जाने की तैयारी कर ली।
(जब) उग्रसैन को बसुदेव के आगमन की खबर मिली
जब उग्रसैन को वासुदेव के आगमन का पता चला तो उन्होंने उनके स्वागत के लिए अपनी चार प्रकार की सेनाएं पहले ही भेज दीं।
स्वय्या
सेनाओं को एक दूसरे से मिलने के लिए व्यवस्थित करने के बाद, सेनापति इस तरह आगे बढ़े।
दोनों पक्षों की सेनाएं आपसी एकता के लिए आगे बढ़ीं, सभी ने लाल पगड़ियां बांध रखी थीं और वे खुशी और उल्लास से भरे हुए बहुत प्रभावशाली लग रहे थे
कवि ने उस सौंदर्य का थोड़ा सा अंश अपने मन में उतार लिया है
कवि ने उस सुन्दरता का संक्षेप में उल्लेख करते हुए कहा है कि वे केसर की क्यारियाँ के समान अपने निवास से निकलकर विवाह के इस मनोहर दृश्य को देखने के लिए आ रही थीं।
दोहरा
कंस और बसुदेव ने एक दूसरे को गले लगा लिया।
कंस और वसुदेव ने एक दूसरे को छाती से लगा लिया और फिर नाना प्रकार के रंगबिरंगे व्यंग्यों की वर्षा करने लगे।
सोर्था
(तब) तुरही बजाते हुए यानि लोग मथुरा के पास आये।
वे ढोल बजाते हुए मथुरा के निकट आये और उनकी शोभा देखकर सब लोग प्रसन्न हुए।