कई लोग स्मृति, शास्त्र और वेदों का पाठ करते हैं!
बहुत से लोग कोक शास्त्र (सेक्स से संबंधित), अन्य काव्य पुस्तकें और सेमेटिक शास्त्र पढ़ते हैं! 10. 130
कई लोग हवन (अग्नि-पूजा) करते हैं और कई लोग हवा पर निर्वाह करते हैं!
कई लाख लोग मिट्टी खाते हैं!
लोग हरी पत्तियां खाएं!
फिर भी प्रभु स्वयं को उनके सामने प्रकट नहीं करते! 11. 131
गंधर्वों के अनेक गीत-धुनें और अनुष्ठान हैं!
ऐसे बहुत से लोग हैं जो वेदों और शास्त्रों के अध्ययन में लीन हैं!
कहीं-कहीं वैदिक आदेशों के अनुसार यज्ञ किये जाते हैं!
कहीं हवन-यज्ञ हो रहे हैं, तो कहीं तीर्थस्थानों पर विधि-विधान से अनुष्ठान हो रहे हैं! 12. 132
कई लोग अलग-अलग देशों की भाषा बोलते हैं!
कई लोग विभिन्न देशों की शिक्षा का अध्ययन करते हैं! कई लोग विभिन्न देशों की शिक्षा का अध्ययन करते हैं
कई लोग कई प्रकार के दर्शनों पर विचार करते हैं!
फिर भी वे प्रभु को थोड़ा भी नहीं समझ सकते! 13. 133
अनेक लोग भ्रमवश विभिन्न तीर्थस्थानों पर भटकते रहते हैं!
कुछ लोग हवन करते हैं और कुछ लोग देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अनुष्ठान करते हैं!
कुछ लोग युद्धकला की शिक्षा पर ध्यान देते हैं!
फिर भी वे प्रभु को नहीं समझ सकते! 14. 134
कहीं राजसी अनुशासन का पालन हो रहा है तो कहीं योग का अनुशासन!
कई लोग स्मृतियों और शास्त्रों का पाठ करते हैं!
कहीं न्योली (आंतों की शुद्धि) सहित यौगिक कर्मों का अभ्यास किया जा रहा है, तो कहीं हाथी उपहार में दिए जा रहे हैं!
कहीं-कहीं अश्वमेध यज्ञ किये जा रहे हैं और उनके पुण्यों का बखान किया जा रहा है! 15. 135
कहीं ब्राह्मण धर्मशास्त्र पर चर्चा कर रहे हैं!
कहीं योगिक विधियों का अभ्यास किया जा रहा है तो कहीं जीवन के चार चरणों का पालन किया जा रहा है!
कहीं यक्ष और गंधर्व गाते हैं!
कहीं-कहीं धूप, मिट्टी के दीपक और अर्घ्य चढ़ाए जाते हैं! 16. 136
कहीं पितरों के लिए कर्म किए जाते हैं तो कहीं वैदिक आदेशों का पालन किया जाता है!
कहीं नृत्य सम्पन्न होते हैं तो कहीं गीत गाए जाते हैं!
कहीं-कहीं शास्त्रों और स्मृतियों का पाठ किया जाता है!
एक पैर पर खड़े होकर प्रार्थना करें! 17. 137
कई लोग अपने शरीर से जुड़े रहते हैं और कई लोग अपने घरों में रहते हैं!
कई लोग विभिन्न देशों में संन्यासी बनकर घूमते हैं!
कई लोग पानी में रहते हैं और कई लोग आग की गर्मी सहते हैं!
बहुत से लोग प्रभु की आराधना उल्टा मुँह करके करते हैं! 18. 138
कई लोग विभिन्न कल्पों (युगों) तक योग का अभ्यास करते हैं!
फिर भी वे प्रभु के अन्त को नहीं जान सकते!
लाखों लोग विज्ञान के अध्ययन में संलग्न हैं!
फिर भी वे प्रभु के दर्शन नहीं कर सकते! 19. 139
भक्ति की शक्ति के बिना वे भगवान को प्राप्त नहीं कर सकते!
यद्यपि वे यज्ञ करते हैं, दान-पुण्य करते हैं!
भगवान के नाम में एकाग्रचित्त लीन हुए बिना !
सारे धार्मिक अनुष्ठान व्यर्थ हैं! 20. 140
आपकी कृपा से टोटक छंद!
तुम सब एक साथ इकट्ठे हो जाओ और उस प्रभु की जयजयकार करो!
जिनके भय से आकाश, पाताल और पृथ्वी काँप उठते हैं!
जिसकी प्राप्ति के लिए जल और थल के सभी तपस्वी तपस्या करते हैं!
इन्द्र कुबेर और राजा बल जिनकी जय हो ! 1. 141
वह दुःखरहित, अविवेकी और निर्भय है!