जिन लोगों के बाल काटे जाने थे, उन्होंने उनके बाल नहीं काटे, तथा धक्का देने वालों को खाना भी नहीं खिलाया।
वह अविवेकी लोगों को धोखा देती है और पतिव्रता पुरुषों को व्यभिचारी बना देती है। जिस घर में वह स्त्री आशंकित रहती है, वहाँ शान्ति कैसे हो सकती है?
दोहरा
इस प्रकार कैकेयी राजा से वरदान मांगने पर अड़ी रही।
राजा को बड़ा दुःख हुआ, परन्तु अपनी रमणी पत्नी के मोह के कारण तथा कामदेव के प्रभाव के कारण वे कुछ बोल न सके।
दोहरा
वह कई बार (रानी के) पैरों पर गिरकर भी वचन से बचने की कोशिश करता है।
राजा ने अनेक प्रकार से रानी के पैर पकड़कर अपने वचन से पीछे हटने को कहा, परंतु वह स्त्री अपनी दुर्बलता (सुन्दरता) दिखाकर अपनी मांग पर अड़ी रही और राजा की कोई भी प्रार्थना स्वीकार नहीं की।।235।।
(कैकई कह रही है-) तुम मुझे वर्षा देते हो, मैं नहीं छोड़ती (भले ही) तुम करोड़ों उपाय करो।
���तुम लाख प्रयत्न करो, मैं तुम्हें वरदान प्राप्त किये बिना नहीं छोडूंगा। राज्य मेरे पुत्र को दे दो और राम को वनवास दे दो।���236.
स्त्री की बातें कानों से सुनकर राजा अपवित्र होकर गिर पड़ा।
अपनी पत्नी के ये वचन सुनकर राजा अचेत हो गया और वन में बाण से बिंधे हुए सिंह के समान पृथ्वी पर गिर पड़ा॥237॥
राम को बाण भेजने की बात सुनकर राजा दुःख से भूमि पर गिर पड़े।
राम के वनवास की बात सुनकर राजा तड़प उठा और पृथ्वी पर गिर पड़ा, जैसे मछली जल से निकलकर तड़पती है और प्राण त्याग देती है।238.
(राजा ने) जब अपने कानों से राम का नाम सुना, तो तुरन्त सावधान होकर उठ बैठे।
पुनः राम नाम सुनकर राजा होश में आ गया और जैसे युद्ध में योद्धा मूर्छित होकर गिर पड़ता है और होश में आकर पुनः तलवार लेकर खड़ा हो जाता है, वैसे ही वह उठ खड़ा हुआ॥239॥
आत्माओं की मृत्यु का भार राजा को उठाना पड़ता है, परंतु धर्म को नहीं छोड़ा जा सकता।
राजा ने अपने धर्म का परित्याग करने की अपेक्षा मृत्यु स्वीकार कर ली और जो वरदान दिए थे, उन्हें प्रदान कर राम को वनवास दे दिया।240.
कैकेयी और राजा के भाषण।
वसिथिआ को संबोधित:
दोहरा
���राम को वनवास दो और भरत को राज्य दो
चौदह वर्ष बाद राम पुनः राजा बनेंगे।241.
वसिष्ठ ने यही बात राम से और भी बेहतर ढंग से कही,
चौदह वर्ष तक भरत राज्य करेगा, उसके बाद तुम राजा होगे।।२४२।।
वसिष्ठ के वचन सुनकर राम (रघुवीर) दुःखी मन से चले गए,
और इधर राजा ने राम का वियोग न सहते हुए प्राण त्याग दिए।243.
सोर्था
उसके स्थान पर पहुँचकर राम ने अपनी सारी सम्पत्ति दान में दे दी।
और कमर में तरकस बाँधकर सीता से बोले 244
हे बुद्धिमान सीता! तुम कौशल्या के पास रहो।
���और निर्वासन के बाद मैं फिर से तुम्हारे साथ शासन करूंगा।���245.
सीता का राम को सम्बोधित भाषण :
सोर्था
मैं अपने प्रियतम का साथ नहीं छोड़ सकता, चाहे मुझे कितना ही कष्ट क्यों न सहना पड़े।
इसके लिए निःसंदेह यदि मेरे अंग भी काट दिए जाएं तो भी मैं तनिक भी पीछे नहीं हटूंगा और न ही इसे समझकर व्यथित होऊंगा।246.
सीता को संबोधित राम का भाषण:
मनोहर छंद
"ओ पतली कमर वाली औरत! अगर तुम्हें ससुराल में रहना पसंद नहीं है तो मैं तुम्हें तुम्हारे पिता के घर भेज दूँगा,"
���और मैं आपकी इच्छानुसार व्यवस्था करूंगा, मेरी ओर से कोई आपत्ति नहीं होगी
यदि तुम धन चाहते हो तो मुझे साफ-साफ बताओ, मैं तुम्हें तुम्हारी इच्छा के अनुसार धन दूंगा।
हे सुन्दर नेत्रों वाली देवी! केवल समय की बात है। यदि आप सहमत हों तो मैं लंका नगरी के समान धन-धान्य से परिपूर्ण नगरी दरिद्रों को दान कर दूँगा।।२४७।।
हे सीता! वन का जीवन कष्टों से भरा है और तुम एक राजकुमारी हो, तुम मुझे बताओ कि तुम वहाँ कैसे रहोगी?
वहां सिंह दहाड़ते हैं, वहां भयंकर कौल, भील रहते हैं, जिन्हें देखकर भय लगता है।
वहां सांप फुंफकारते हैं, बाघ गरजते हैं और वहां अत्यंत कष्टदायक भूत-प्रेत और राक्षस भी हैं।
प्रभु ने तुम्हें नाजुक प्राणी बनाया है, थोड़ा सोचो, तुम वन में क्यों जाओ?
सीता का राम को सम्बोधित भाषण :
मनोहर छंद