और अनेक प्रकार की घंटियाँ बजाने के बाद उसका (उचित ढंग से) विवाह हो गया। २१.
कलियुग (नल का भाई) पुह्करी (पुष्कर) का रूप धारण करके वहाँ गया।
जब वह दमवंती से विवाह करके उसे घर ले आये।
उसने नल को अनेक प्रकार से जुआ ('जूप') खेलकर पराजित किया
और सारा राज्य और राजसिंहासन जीतकर नल को बाण भेजा। 22.
जब नल राज-सज इस प्रकार पराजित हो गया,
अतः हृदय में बहुत पीड़ा लेकर वे अयोध्या आये।
पति के वियोग के बाद दमवंती बेसहारा हो गई
और जिस मार्ग पर पति गया, उसी मार्ग पर वह भी गिर पड़ी। 23.
दमवंती को भी अपने पति के बिना बहुत कष्ट सहना पड़ा।
मैं (उस दर्द का) कितना भी वर्णन करूं, वह वर्णित नहीं हो सकता।
नल राजे की मृत्यु बिरहोन में हुई
वह महिला चंदेरी नगर में आई।
भीमसेन ने उसे ढूंढने के लिए कई आदमी भेजे।
(उन्होंने) दमवंती को ढूंढ़ लिया और उसे घर ले गये।
जिन ब्राह्मणों ने दमवंती को ढूंढ़ लिया था, उन्हें पुनः नल को ढूंढने के लिए भेजा गया।
और वे खोजते हुए अयोध्या आ पहुंचे।
बहुत से लोगों को देखकर उसने (नल ने) उसकी ओर देखा
और दमवंती का नाम लिया।
उन्होंने अपनी आंखों में जल भरकर उसकी (दमवंती की) खुशी मांगी।
तब ब्राह्मणों को ज्ञात हुआ कि यह तो नल राजा है।
जब उसने जाकर बताया कि नल राजा मिल गये हैं,
तब दमवंती ने पुनः सुअम्बर का प्रबंध किया।
राजा (भीमसैन) के वचन सुनकर सब राजा वहाँ गये।
नल राजा भी रथ पर सवार होकर वहाँ आये।
दोहरा:
सभी लोगों ने रथ पर सवार राजा नल को पहचान लिया।
दमवंती ने यह चरित्र किया और उससे पुनः विवाह किया।२८.
चौबीस:
राजा नल दमवंती को लेकर घर आये
और फिर जुए से दुश्मनों को हराओ।
(उसने) अपना राज्य पुनः जीत लिया।
दोनों को एक दूसरे का सुख मिला। 29।
दोहरा:
मैंने संक्षेप में उसकी यह कहानी बतायी है।
इसीलिए पुस्तक का विस्तार नहीं किया गया है।30.
दमवंती ने यह चरित्र निभाया और फिर उसका विवाह (राजा नल से) हुआ।
जुआ संसार में सबसे बुरा है, किसी राजा को इसे नहीं खेलना चाहिए। 31.
श्रीचरित्रोपाख्यान के त्रिचरित्र के मंत्र भूप संवाद के १५७वें अध्याय का समापन यहां प्रस्तुत है, सब मंगलमय है। १५७.३१२९. आगे जारी है।
चौबीस:
वहां चौद भरत नाम का एक साधु रहता था।
दूसरे को लोग रंडीगीर कहते थे।
राम नाम का एक लड़का था।
वह उनके प्रति कटु था। 1.
एक दिन उन दोनों के बीच झगड़ा हो गया
और लाठियों से पीटा गया।
कुछ कंठी और कुछ अन्य जटाओं की पोटली (खुली हुई)।
और खोपड़ियाँ बहुत टूट गईं। 2.
कहीं टोपियाँ गिर गईं
और कहीं-कहीं जटाओं के ऊंचे-ऊंचे ढेर लगे हुए थे।
(वे एक दूसरे को) पैरों और मुट्ठियों से पीटते थे,
ऐसा लगता है जैसे घड़ी टिक-टिक कर रही है। 3.
दोहरा:
जब लाठियां बज रही थीं और खूब जूते बज रहे थे तो हर कोई झूम रहा था।
सारे चेहरे ('बदन') खुल गये, एक भी साबित नहीं हुआ। 4.
चौबीस:
कई लोगों की गर्दनें टूट गईं।
लाठियाँ मारकर जटाएँ खोली गईं।
वहाँ (चेहरे पर) कील का घाव था,
मानो चाँद उग आया हो। 5.
कई मामले (जातियाँ) केसलेस हो गए हैं।
कितने मारे गए, कितने घायल हुए (और कितने) मर गए।
कई लोगों ने एक दूसरे को दांतों से काटकर खा लिया।
इस तरह का युद्ध पहले कभी नहीं हुआ। 6.
जूते बहुत हिट हुए
कि यह किसी के सिर पर न चिपके।
किसी के गले में कोई गांठ नहीं थी।
तब बालक राम ने जूता अपने हाथ में ले लिया।
(उसने) एक साधु के सिर पर जूते से प्रहार किया
और दूसरे (तपस्वी) के चेहरे पर मारा।
जब मुंह खुला तो खून बहने लगा।
ऐसा लगता है जैसे सावन में वर्षा का जल बह गया हो।८.