कहीं-कहीं तलवारों की धारें चमक रही थीं।
(कहीं) भयानक रंड और लड़का चिल्ला रहे थे। 155.
भुजंग छंद:
बहुत भयानक युद्ध हुआ था
और योद्धाओं के धड़ बेहोश पड़े थे।
कहीं डमरू बजा रहा था शब्द दाह दाह
(जिसे सुनकर) बड़े-बड़े दिग्गजों का गर्व जाता रहा। १५६।
कहीं शंख, भेरी, ताल बज रहे थे।
बाण, वीणा, डफ और नगाड़े बज रहे थे।
कहीं-कहीं तुरही और नरसिंगों की ध्वनि ऐसी सुनाई दे रही थी,
जैसे काल की बाढ़ बज रही है। १५७।
कुछ च्येन, तुरीय, नगारे, मृदंग,
बांसुरी, बीन और सुरीले वाद्य बज रहे थे।
कहीं तूबा, तरंग आदि बज रहे थे।
कहीं-कहीं वीर-वार्ता सुन्दर ढंग से कही जा रही थी। १५८.
कहीं झांझ, ताल, बेन, बीना ऐसे बज रहे थे
बिल्कुल बाढ़ के समय के माहौल जैसा।
कुछ बांसुरी, शहनाई, मृदंग,
सारंगी, मुचंग और उपांग बजा रहे थे। 159.
कहीं-कहीं राजा अपनी भुजाओं पर हाथ रखकर ताली बजा रहा था।
कहीं-कहीं नायक ही नायकों का रास्ता रोक रहे थे।
कहीं-कहीं (योद्धा) हथियार और कवच लेकर चल रहे थे
और कहीं ढालों से वे उन्हें पीटते थे। १६०।
कहीं योद्धाओं की पट्टियाँ रण्ड (धड़) को सुशोभित कर रही थीं, तो कहीं मुंड (सिर) को।
कहीं-कहीं निडर ('निसाके') योद्धाओं को काटकर मार दिया गया।
कहीं घोड़े मारे जा रहे थे तो कहीं हाथी लड़ रहे थे।
कहीं-कहीं ऊँट काटे जाते थे (जिन्हें) पहचाना नहीं जा सकता था। 161.
कहीं ढालें ('ताबीज') और कवच ('ब्रम') इस तरह ज़मीन पर पड़े थे,
सिलाई करते समय कपड़ों को व्यवस्थित करने का तरीका।
योद्धा इस प्रकार भयंकर युद्ध लड़ रहे थे।
जैसे मलंग भांग पीकर सो रहा हो। १६२।
कहीं-कहीं तार 'दाह दह' बज रहे थे।
युद्ध भूमि में कहीं-कहीं मारु राग खूब गाया जा रहा था।
कभी-कभी (योद्धा) हँसते और अपनी भुजाएँ थपथपाते, और कभी-कभी वे अपनी जाँघों पर हाथ पटकते।
कहीं योद्धा योद्धाओं के सिर काट रहे थे। १६३।
कुछ अपचरावन ('चंचला') सुन्दर कवच से सुसज्जित
युद्ध में लड़ने वाले युवा योद्धा बरस रहे थे।
कहीं-कहीं योद्धा योद्धाओं के पैर (पीछे) धकेलते थे।
(उस) महान युद्ध में योद्धा अच्छे भालों से मार-काट करने में लगे हुए थे। 164.
कुछ यक्षणी, किन्नरानी,
गंधर्वी और देवनी (स्त्रियाँ) प्रसन्न होकर चल रही थीं।
कहीं पर परियाँ और वानर गा रहे थे।
कहीं-कहीं स्त्रियाँ (सुन्दर) वस्त्र सजा रही थीं। १६५।
कहीं देव-सेनिया ताल पर नाच रही थीं
और कहीं-कहीं राक्षस-पुत्रियाँ खिलखिलाकर हंस रही थीं।
कहीं-कहीं महिलाएं सुन्दर वस्त्र ('अंचला') बना रही थीं।
कहीं-कहीं यक्षणियाँ और किन्नरियाँ गीत गा रही थीं। १६६.
महान तेजस्वी योद्धा क्रोध में लड़ रहे थे