मानो विश्वकर्मा की पुत्री।14।
एक चतुर था और दूसरा चतुर,
मनो काम की दूसरी मूर्ति है।
वह गोरी थी और पान खाती थी।
(ऐसा लग रहा था) जैसे आसमान में चाँद उग आया हो। 15.
(वह) चितेरी (परी) उसके घर गई
और उसकी एक तस्वीर भी ले आये।
जब राजा ने उसके हाथ में वह प्रतिमा देखी।
ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे कामदेव ने डोरी को कसकर काट दिया हो। 16.
उसकी सारी चेतना चली गयी और वह नशे में नाचने लगा।
(ऐसा लग रहा था) जैसे घाव इधर-उधर हिल रहा हो।
वह अपने शरीर का ध्यान नहीं रख सका।
जैसे काँटों वाले साँप ने डसा हो। 17.
एक दिन राजा ने भोज रखा
और नगर की सारी स्त्रियों को महल में ले आया।
जब सिद्धपाल की बेटी आई, (ऐसा दिखाई दिया)
दीपक तो मानो पूरी सभा के लिए वरदान बन गया है।
एक छेद से उसने (राजा ने) देखा,
तभी हजरत मतवाला बने।
(उसका) मन स्त्री के रूप पर बिक गया था
और (यह) समझ लो कि उसका शरीर लूत के समान हो गया। 19.
हज़रत ने सभी पठानों को बुलाया
और सिद्धपाल के घर भेज दिया गया।
(उनके द्वारा यह कहला भेजा गया) या तो अपनी बेटी मुझे दे दो,
अन्यथा समझो कि मौत तुम्हारे सिर पर आ गयी। 20.
सभी पठान उसके घर चले गये।
उसने वही कहा जो हज़रत ने कहा था
हे सिद्धपाल! तुम भाग्यशाली हो
(क्योंकि) राजा की सवारी तुम्हारे घर आएगी। 21.
जब सिद्धपाल ने यह सुना।
(तब) उसने बड़े दुःख से अपना माथा छुआ।
(यह सोचकर) भगवान ने मेरी क्या हालत कर दी है?
मेरे घर में ऐसी दुःखद बेटी पैदा हुई है।
यदि वह न दे तो काम बिगड़ जाता है (अर्थात राजा नाराज हो जाता है)।
अगर मैं देता हूं, तो छतरियां लॉज जैसी लगती हैं।
(क्योंकि) यह मुगल, पठान या तुर्क का घर है
(अभी तक कोई भी) छत्राणी नहीं गया है। 23.
छत्रियों में ऐसा अभी तक नहीं हुआ है
तुर्कों को (घर से) दूर ले जाकर एक बेटी दे दी गयी।
राजपूतों में ऐसा होता रहा है
कि कन्याएँ (मलेच्छ के घर) भेज दी गई हैं। 24.
(लेकिन) ये एक नाव और दूसरा छाते
तुर्कों को अपना पुत्रत्व कभी नहीं दिया।
जो छत्री इस प्रकार का काम करता है,
(तब) वह अपने शरीर के साथ कुम्फी नरक में जाता है। २५.
जो तुर्क पुरुषों को बेटियाँ देती है,
दुनिया उसे 'धृग धृग' कहती है।
उस (छाते) के लोग आख़िरत (दोनों) में जायेंगे।