जब शक्ति सिंह ने क्रूरध्वज को गिरा दिया तो शत्रु भी उसी प्रकार भागने लगे, जैसे लोग वर्षा में भीगने से बचने के लिए इधर-उधर भागते हैं।1307.
स्वय्या
अपने भाई को मरा हुआ देखकर काकध्वज अत्यन्त क्रोधित होकर आगे आया।
उन्होंने अपने दांतों को कई योजन (दूरी का एक माप) तक लंबा कर लिया और अपने शरीर को एक पर्वत के आकार तक बढ़ा लिया
उसने पेड़ों की तरह अपने बाल बढ़ा लिए और हाथ में हथियार लेकर युद्ध के मैदान में आया।
शक्ति सिंह ने अपना धनुष खींचकर एक ही बाण से उसे नीचे गिरा दिया।1308.
वहाँ राक्षसों की सेना का स्वामी खड़ा था, वह बड़े क्रोध में शक्ति सिंह पर टूट पड़ा
उन्होंने अपनी सेना की सर्वोच्च टुकड़ी को साथ लिया और बड़े क्रोध में आगे बढ़े।
युद्ध भूमि में आये इस राक्षस का नाम था कुरुप
वह सावन के बादलों की तरह शत्रुओं का नाश करने के लिए आगे बढ़ा।1309.
शत्रु की विशाल सेना को देखकर शक्ति सिंह सुरवीर क्रोधित हो गए।
अपने शत्रुओं की सेना के चार भाग देखकर शक्ति सिंह क्रोध से भर गया, किन्तु युद्ध भूमि में धैर्य के साथ उसने धनुष-बाण हाथ में ले लिए।
वह शत्रु सेना के सामने गया और उसे देखकर सभी भागने लगे।
दैत्यों के बादलों को नष्ट करने के लिए वह योद्धा वायु के समान दिख रहा था।।१३१०।।
'कुरूप' (विशाल) अदृश्य हो गया और आकाश में जाकर ये शब्द कहे
कुरूप अदृश्य हो गए और आकाश में प्रकट होकर बोले, "हे शक्तिसिंह! तुम अपनी रक्षा के लिए कहां जाओगे?" यह कहकर उन्होंने हाथी, घोड़े, वृक्ष, आदि सभी देवताओं को अपने ऊपर बरसा दिया।
पत्थर, चट्टानें, रथ, शेर, पहाड़, भालू और काले नाग
वे सभी धरती पर गिर पड़े, जिनके नीचे शक्ति सिंह को छोड़कर सभी कुचलकर मारे गये।1311.
(राक्षस) राजा (शक्ति सिंह) जितने पर्वतों पर गिरे हैं, उतने ही पर्वतों को उसने बाणों से बचा लिया है।
राजा (शक्तिसिंह) ने अपने ऊपर फेंकी हुई सब वस्तुओं को अपने बाणों से रोक लिया और वह महाबली योद्धा अपने बल से वहाँ पहुँच गया, जहाँ राक्षस खड़े थे॥
इस शक्तिशाली योद्धा ने अपनी तलवार हाथ में लेकर उनमें से कुछ को घायल कर दिया और कईयों को मार डाला
राक्षसों की सेना कुछ भी सार्थक कार्य नहीं कर सकी तथा अपने कपटपूर्ण तरीकों के कारण उसे पराजित होना पड़ा।
राजा ने धनुष-बाण हाथ में लेकर कुरूप को अपना लक्ष्य बनाया।
जो जीवित था और अपने हाथों में हथियार लिए हुए था, कई योद्धा तड़प उठे
जो भी लड़ने के लिए आगे आया, वह बेजान हो गया और कई लोग खड़े होकर खून से लथपथ दिखाई दिए
वे वसन्त ऋतु में लाल केसू के फूलों के समान हिलते हुए प्रतीत होते थे।1313.
दोहरा
शक्ति सिंह ने उस युद्ध में फिर से हथियार उठा लिए हैं
उस युद्ध में शक्ति सिंह ने अपने शस्त्र धारण कर राक्षस सेना के बहुत से योद्धाओं को मार डाला।1314.
स्वय्या
उस कुरूप राक्षस का एक भाई जिसका नाम 'बिक्रतानन' था, क्रोध से भर गया और उसके हाथ में तलवार आ गई।
कुरुप के भाई विकर्तनन ने बड़े क्रोध में तलवार हाथ में पकड़ ली और उसने शत्रु को मारने का प्रयत्न किया।
वह रथ चलाकर वहाँ आया और युद्ध की इच्छा के कारण वहाँ से नहीं हटा।
वह रथ को हांककर, युद्ध की भावना से युक्त होकर वहां पहुंचा और बोला, "राजन्! अपनी तलवार ऊपर उठाओ, मैं तुम्हें मार डालूंगा।"
दोहरा
ये शब्द सुनकर शक्ति सिंह ने भाला उठा लिया।
यह शब्द सुनकर शक्तिसिंह ने अपनी शक्ति (शक्तिशाली अस्त्र) हाथ में ली और शत्रु की ओर देखकर सूर्य किरणों के समान तीव्र गति से उस शक्ति को छोड़ा।1316.
स्वय्या
शक्ति विकर्तनन के हृदय को भेदती हुई, शरीर के दूसरी ओर तक फैल गई
जिस शरीर पर थीं स्वर्ण आकृतियाँ,
यह सब खून से रंगा हुआ था
शरीर में प्रविष्ट वह शक्ति उस सूर्य के समान दिख रही थी, जिसे राहु ने अपना शत्रुतापूर्ण स्मरण करके निगल लिया था।।१३१७।।
दोहरा
सुरवीर (विशालकाय) ने छाती में भाला लगते ही प्राण त्याग दिए।
खड्ग के लगते ही उस महाबली योद्धा ने प्राण त्याग दिये और सभी महाबली योद्धा मन में भय उत्पन्न करके विलाप करने लगे।1318।
जब बिक्रतनन को शक्तिशाली शक्ति सिंह ने मार डाला।
जब वीर शक्ति सिंह ने विकर्तनन का वध कर दिया, तब कुरूप अपने भाई की मृत्यु का दुःख सहन न कर सका।1319.
स्वय्या