अन्य अनेक सुन्दर रूप हो सकते हैं, परन्तु कोई भी प्रिय गुरु के तेजोमय रूप के समीप नहीं पहुंच सकता, और न ही लाखों अमृत-तुल्य पदार्थ गुरु के मधुर वचनों तक पहुंच सकते हैं।
मैं अपने सच्चे गुरु की कृपा दृष्टि के आगे जीवन की चारों इच्छाओं का त्याग कर देता हूँ। मैं अपने सच्चे गुरु की एक मधुर मुस्कान के आगे असंख्य मोक्षों का त्याग कर सकता हूँ। (धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सच्चे गुरु की मुस्कान और कृपा दृष्टि के आगे तुच्छ हैं)।
करोड़ों स्वर्गों के सुख भी सच्चे गुरु के साथ एक क्षणिक मुलाकात की बराबरी नहीं कर सकते और उनसे पूर्ण मुलाकात से मिलने वाले सुख समुद्र की क्षमता से परे हैं।
सच्चे गुरु की महिमा और प्रेममय अमृत तक कोई नहीं पहुँच सकता। मैं अपना तन, मन और धन उन पर अर्पण करता हूँ। (646)