जिस प्रकार एक तीतर चांदनी की किरणों से मंत्रमुग्ध हो जाता है और उसे ध्यानपूर्वक देखता रहता है।
जिस प्रकार अँधेरे में जलते दीपक की लौ के चारों ओर असंख्य कीट-पतंगे एकत्रित हो जाते हैं।
जैसे चींटियाँ उस बर्तन के चारों ओर इकट्ठी हो जाती हैं जिसमें कुछ मीठा मांस रखा गया हो।
इसी प्रकार सारा संसार उस गुरु रूपी सिख के चरणों में सिर झुकाता है जिसे सच्चे गुरु द्वारा परम निधि अर्थात् दिव्य वचन प्राप्त हो और जो निरंतर अभ्यास द्वारा सिख के हृदय में अच्छी तरह बसा हो। (367)