कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 367


ਜੈਸੇ ਸਸਿ ਜੋਤਿ ਹੋਤ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਗਾਸ ਤਾਸ ਚਿਤਵਤ ਚਕ੍ਰਤ ਚਕੋਰ ਧਿਆਨ ਧਾਰ ਹੀ ।
जैसे ससि जोति होत पूरन प्रगास तास चितवत चक्रत चकोर धिआन धार ही ।

जिस प्रकार एक तीतर चांदनी की किरणों से मंत्रमुग्ध हो जाता है और उसे ध्यानपूर्वक देखता रहता है।

ਜੈਸੇ ਅੰਧਕਾਰ ਬਿਖੈ ਦੀਪ ਹੀ ਦਿਪਤ ਦੇਖਿ ਅਨਿਕ ਪਤੰਗ ਓਤ ਪੋਤਿ ਹੋਇ ਗੁੰਜਾਰ ਹੀ ।
जैसे अंधकार बिखै दीप ही दिपत देखि अनिक पतंग ओत पोति होइ गुंजार ही ।

जिस प्रकार अँधेरे में जलते दीपक की लौ के चारों ओर असंख्य कीट-पतंगे एकत्रित हो जाते हैं।

ਜੈਸੇ ਮਿਸਟਾਨ ਪਾਨ ਜਾਨ ਕਾਜ ਭਾਂਜਨ ਮੈ ਰਾਖਤ ਹੀ ਚੀਟੀ ਕੋਟਿ ਲੋਭ ਲੁਭਤ ਅਪਾਰ ਹੀ ।
जैसे मिसटान पान जान काज भांजन मै राखत ही चीटी कोटि लोभ लुभत अपार ही ।

जैसे चींटियाँ उस बर्तन के चारों ओर इकट्ठी हो जाती हैं जिसमें कुछ मीठा मांस रखा गया हो।

ਤੈਸੇ ਪਰਮ ਨਿਧਾਨ ਗੁਰ ਗਿਆਨ ਪਰਵਾਨ ਜਾਮੈ ਸਕਲ ਸੰਸਾਰ ਤਾਸ ਚਰਨ ਨਮਸਕਾਰ ਹੀ ।੩੬੭।
तैसे परम निधान गुर गिआन परवान जामै सकल संसार तास चरन नमसकार ही ।३६७।

इसी प्रकार सारा संसार उस गुरु रूपी सिख के चरणों में सिर झुकाता है जिसे सच्चे गुरु द्वारा परम निधि अर्थात् दिव्य वचन प्राप्त हो और जो निरंतर अभ्यास द्वारा सिख के हृदय में अच्छी तरह बसा हो। (367)