कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 446


ਜੈਸੇ ਤਉ ਗਗਨ ਘਟਾ ਘਮੰਡ ਬਿਲੋਕੀਅਤਿ ਗਰਜਿ ਗਰਜਿ ਬਿਨੁ ਬਰਖਾ ਬਿਲਾਤ ਹੈ ।
जैसे तउ गगन घटा घमंड बिलोकीअति गरजि गरजि बिनु बरखा बिलात है ।

जिस प्रकार आकाश में प्रायः काले बादल दिखाई देते हैं जो गरजते हैं, परन्तु वर्षा की एक बूँद भी गिराए बिना ही तितर-बितर हो जाते हैं।

ਜੈਸੇ ਤਉ ਹਿਮਾਚਲਿ ਕਠੋਰ ਅਉ ਸੀਤਲ ਅਤਿ ਸਕੀਐ ਨ ਖਾਇ ਤ੍ਰਿਖਾ ਨ ਮਿਟਾਤ ਹੈ ।
जैसे तउ हिमाचलि कठोर अउ सीतल अति सकीऐ न खाइ त्रिखा न मिटात है ।

जिस प्रकार बर्फ से ढका हुआ पर्वत बहुत कठोर और ठंडा होता है, उससे न तो कुछ खाने योग्य मिलता है और न ही बर्फ खाने से प्यास बुझती है।

ਜੈਸੇ ਓਸੁ ਪਰਤ ਕਰਤ ਹੈ ਸਜਲ ਦੇਹੀ ਰਾਖੀਐ ਚਿਰੰਕਾਲ ਨ ਠਉਰ ਠਹਰਾਤਿ ਹੈ ।
जैसे ओसु परत करत है सजल देही राखीऐ चिरंकाल न ठउर ठहराति है ।

जैसे ओस शरीर को गीला कर देती है, लेकिन उसे ज्यादा देर तक एक जगह पर नहीं रखा जा सकता, उसे स्टोर नहीं किया जा सकता।

ਤੈਸੇ ਆਨ ਦੇਵ ਸੇਵ ਤ੍ਰਿਬਿਧਿ ਚਪਲ ਫਲ ਸਤਿਗੁਰ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਪ੍ਰਵਾਹ ਨਿਸ ਪ੍ਰਾਤ ਹੈ ।੪੪੬।
तैसे आन देव सेव त्रिबिधि चपल फल सतिगुर अंम्रित प्रवाह निस प्रात है ।४४६।

इसी प्रकार माया के तीन गुणों में जीवन जीने वाले देवताओं की सेवा का फल भी मिलता है। उनका पुरस्कार भी धन के तीन गुणों से प्रभावित होता है। केवल सच्चे गुरु की सेवा ही नाम-बानी के अमृत के प्रवाह को हमेशा के लिए बनाए रखती है। (446)