कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 530


ਜੈਸੇ ਅਹਿਨਿਸਿ ਮਦਿ ਰਹਤ ਭਾਂਜਨ ਬਿਖੈ ਜਾਨਤ ਨ ਮਰਮੁ ਕਿਧਉ ਕਵਨ ਪ੍ਰਕਾਰੀ ਹੈ ।
जैसे अहिनिसि मदि रहत भांजन बिखै जानत न मरमु किधउ कवन प्रकारी है ।

जैसे शराब दिन-रात बोतल में रहती है, लेकिन बोतल/बर्तन को अपनी विशेषताओं का पता नहीं चलता।

ਜੈਸੇ ਬੇਲੀ ਭਰਿ ਭਰਿ ਬਾਂਟਿ ਦੀਜੀਅਤ ਸਭਾ ਪਾਵਤ ਨ ਭੇਦੁ ਕਛੁ ਬਿਧਿ ਨ ਬੀਚਾਰੀ ਹੈ ।
जैसे बेली भरि भरि बांटि दीजीअत सभा पावत न भेदु कछु बिधि न बीचारी है ।

जैसे किसी पार्टी में प्यालों में शराब बांटी जाती है, परंतु वह प्याला उसका (शराब का) रहस्य नहीं जानता और न ही उसके बारे में सोचता है।

ਜੈਸੇ ਦਿਨਪ੍ਰਤਿ ਮਦੁ ਬੇਚਤ ਕਲਾਲ ਬੈਠੇ ਮਹਿਮਾ ਨ ਜਾਨਈ ਦਰਬ ਹਿਤਕਾਰੀ ਹੈ ।
जैसे दिनप्रति मदु बेचत कलाल बैठे महिमा न जानई दरब हितकारी है ।

जैसे एक शराब व्यापारी दिन भर शराब बेचता रहता है, परन्तु धन के लालच में उसे उसके नशे का महत्व पता नहीं होता।

ਤੈਸੇ ਗੁਰ ਸਬਦ ਕੇ ਲਿਖਿ ਪੜਿ ਗਾਵਤ ਹੈ ਬਿਰਲੋ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪਦੁ ਅਧਿਕਾਰੀ ਹੈ ।੫੩੦।
तैसे गुर सबद के लिखि पड़ि गावत है बिरलो अंम्रित रसु पदु अधिकारी है ।५३०।

इसी प्रकार बहुत से लोग गुरु शब्द और गुरबाणी लिखते हैं, गाते हैं और पढ़ते हैं, परन्तु उनमें से कोई विरला ही होता है जो उससे दिव्य अमृत प्राप्त करने की प्रेमपूर्ण इच्छा रखता हो। (530)