कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 273


ਪ੍ਰਿਥਮ ਹੀ ਤਿਲ ਬੋਏ ਧੂਰਿ ਮਿਲਿ ਬੂਟੁ ਬਾਧੈ ਏਕ ਸੈ ਅਨੇਕ ਹੋਤ ਪ੍ਰਗਟ ਸੰਸਾਰ ਮੈ ।
प्रिथम ही तिल बोए धूरि मिलि बूटु बाधै एक सै अनेक होत प्रगट संसार मै ।

तिल का बीज बोया जाता है जो धरती में मिलकर पौधा बन जाता है। एक बीज से अनेक बीज निकलते हैं और वे संसार में अनेक रूपों में फैलते हैं।

ਕੋਊ ਲੈ ਚਬਾਇ ਕੋਊ ਖਾਲ ਕਾਢੈ ਰੇਵਰੀ ਕੈ ਕੋਊ ਕਰੈ ਤਿਲਵਾ ਮਿਲਾਇ ਗੁਰ ਬਾਰ ਮੈ ।
कोऊ लै चबाइ कोऊ खाल काढै रेवरी कै कोऊ करै तिलवा मिलाइ गुर बार मै ।

कुछ लोग इन्हें (तिल) खाते हैं, कुछ लोग चीनी की गोलियों में इन्हें लपेटते हैं (रेवाड़ी) जबकि अन्य लोग इन्हें गुड़ की चाशनी में मिलाकर केक/बिस्किट जैसे खाद्य पदार्थ बनाते हैं।

ਕੋਊ ਉਖਲੀ ਡਾਰਿ ਕੂਟਿ ਤਿਲਕੁਟ ਕਰੈ ਕੋਊ ਕੋਲੂ ਪੀਰਿ ਦੀਪ ਦਿਪਤ ਅੰਧਿਆਰ ਮੈ ।
कोऊ उखली डारि कूटि तिलकुट करै कोऊ कोलू पीरि दीप दिपत अंधिआर मै ।

कुछ लोग इन्हें पीसकर दूध के पेस्ट के साथ मिलाकर मिठाई बनाते हैं, कुछ लोग इन्हें निचोड़कर तेल निकालते हैं और इसका उपयोग दीपक जलाने तथा अपने घरों को रोशन करने के लिए करते हैं।

ਜਾ ਕੇ ਏਕ ਤਿਲ ਕੋ ਬੀਚਾਰੁ ਨ ਕਹਤ ਆਵੈ ਅਬਿਗਤਿ ਗਤਿ ਕਤ ਆਵਤ ਬੀਚਾਰ ਮੈ ।੨੭੩।
जा के एक तिल को बीचारु न कहत आवै अबिगति गति कत आवत बीचार मै ।२७३।

जब सृष्टिकर्ता के एक तिल के बराबर भी अनेकता का वर्णन नहीं किया जा सकता, तो अज्ञेय, निराकार परमेश्वर को कैसे जाना जा सकता है? (२७३)