जैसे एक नर बिल्ली कहती है कि उसने मांस खाना बंद कर दिया है, लेकिन जैसे ही वह एक चूहे को देखती है, उसके पीछे दौड़ पड़ती है (उसे खाने की अपनी इच्छा को नियंत्रित नहीं कर पाती)।
जिस प्रकार कौआ हंसों के बीच जाकर बैठता है, परंतु हंसों का भोजन मोती छोड़कर सदैव मैल और कूड़ा-कचरा खाने की इच्छा रखता है।
जिस प्रकार एक सियार लाख कोशिश कर ले कि चुप रहे, लेकिन आदतन दूसरे सियारों की बात सुनकर वह चिल्लाना बंद नहीं कर सकता।
इसी प्रकार दूसरों की स्त्री पर दृष्टि डालना, दूसरों के धन पर नजर रखना तथा दूसरों की निन्दा करना ये तीन दुर्गुण मेरे मन में असाध्य रोग की तरह घर कर गए हैं। यदि कोई मुझे इन्हें छोड़ने के लिए कहे भी तो ये दुर्गुण दूर नहीं हो सकते।