गुरु का आज्ञाकारी सिख संत पुरुषों की संगति में ईश्वरीय शब्द को अपनी चेतना के साथ जोड़ता है। इससे उसके मन में गुरु के ज्ञान का प्रकाश प्रज्वलित होता है
जैसे सूर्य के उदय होने पर कमल का फूल खिलता है, वैसे ही गुरु के ज्ञान रूपी सूर्य के उदय होने पर गुरु के सिख के नाभि-क्षेत्र में कमल खिलता है, जिससे उसे आध्यात्मिक प्रगति करने में सहायता मिलती है। फिर नाम का ध्यान संध्या के साथ आगे बढ़ता है।
ऊपर वर्णित विकास के साथ, भौंरे जैसा मन प्रेम द्वारा ग्रसित होकर नाम के शांतिदायक सुगंधित अमृत में लीन हो जाता है। वह नाम सिमरन के आनंद में लीन हो जाता है।
गुरु-नाम में लीन गुरु-प्रधान पुरुष की परमानंद अवस्था का वर्णन शब्दों से परे है। इस उच्च आध्यात्मिक अवस्था में मग्न होकर उसका मन अन्यत्र भटकता ही नहीं। (257)