मानव जीवन तभी सार्थक होता है जब कोई सच्चे गुरु का आज्ञाकारी सिख बनकर जीवन व्यतीत करता है और उसके सभी लाभ प्राप्त करता है। गुरु द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने से ही पैर सफल होते हैं।
आंखें सफल हैं यदि वे प्रभु की सर्वव्यापकता को स्वीकार कर लें और उन्हें सर्वत्र देखें। माथा सफल है यदि वह सद्गुरु के बताए मार्ग की धूल को छू ले।
हाथ सद्गुरु को प्रणाम करने तथा उनकी वाणी लिखने के लिए उठने से सफल होते हैं। कान प्रभु की महिमा, गुणगान तथा गुरु के वचन सुनने से सफल होते हैं।
सिख के लिए पवित्र और सच्ची आत्माओं का समागम लाभदायक है क्योंकि इससे उसे प्रभु से एकाकार होने में मदद मिलती है। इस प्रकार नाम सिमरन की परंपरा का पालन करते हुए, वह तीनों लोकों और तीनों कालों से परिचित हो जाता है। (91)