मन, वचन और कर्म की सामंजस्यपूर्ण स्थिति के कारण, गुरु का शिष्य, जिसे नाम-सिमरन के प्रेममय अमृत का आशीर्वाद प्राप्त होता है, उच्च चेतन अवस्था को प्राप्त करता है।
नाम-सुगंध के कारण उसे सद्गुरु के दर्शन होते हैं और उसके कान निरन्तर उनका दिव्य संगीत सुनते रहते हैं।
शब्द और चेतना का यह सामंजस्यपूर्ण एकीकरण उनकी जीभ को मधुर और सुखदायक बना देता है।
उनकी सांस का बाहर निकलना भी सुगंधित है और यह उनकी मानसिक क्षमताओं और नाम के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंध की उच्च स्थिति को दर्शाता है।
इस प्रकार भगवान् का निरन्तर ध्यान करने से, उनकी नाम की सुगन्धि को अपनी जिह्वा, नेत्र, कान और नासिका में बसाकर, गुरु-चेतन व्यक्ति अपने अन्दर करोड़ों ब्रह्माण्डों में निवास करने वाले भगवान् की उपस्थिति का अनुभव करता है। (५३)