जिस प्रकार जल से अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ उत्पन्न होती हैं, उसी प्रकार चंदन की सुगंध से उसके आस-पास की सभी वनस्पतियाँ अपनी ही तरह महक उठती हैं। (जैसे जल से वनस्पतियों में विविधता आती है, उसी प्रकार देवी-देवताओं से संबंध रखने से भी वनस्पतियों में विविधता आती है।)
जैसे कोई धातु अग्नि में डालने पर अग्नि की तरह चमकती है, लेकिन वास्तव में वह उससे भिन्न नहीं होती। लेकिन पारस पत्थर के स्पर्श से वही धातु सोने की तरह चमकने लगती है।
इसी प्रकार अन्य देवी-देवताओं की सेवा भी जन्म-जन्मान्तर के अहंकार रूपी मैल को नष्ट नहीं कर सकती, किन्तु तेजस्वी सद्गुरु की सफल सेवा ही मनुष्य को भवसागर से पार उतार देती है।
सच्चे गुरु द्वारा आशीर्वादित नाम सिमरन का महत्व और आनंद वर्णन से परे है। इसीलिए सभी बार-बार यही कहते हुए प्रार्थना करते हैं और नमस्कार करते हैं - यह नहीं, यह भी नहीं और यह भी नहीं। (489)