जिस प्रकार करोड़ों-अरबों की रकम को लिखने में कोई बोझ नहीं होता, लेकिन यदि उतनी रकम गिनकर किसी के सिर पर रख दी जाए, तो वह व्यक्ति ही जानता है कि उसके ऊपर कितना बोझ है।
जैसे बार-बार अमृत कहने से, अमृत तब तक मुक्ति प्रदान नहीं करता जब तक कि परम अमृत का स्वाद न लिया जाए।
जैसे किसी भट्ट द्वारा की गई प्रशंसा किसी व्यक्ति को तब तक राजा नहीं बनाती जब तक कि वह सिंहासन पर न बैठ जाए और विशाल साम्राज्य वाला राजा न बन जाए।
इसी प्रकार केवल सुनने या कहने से गुरु का ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता, जब तक कि गुरु से प्राप्त गुरु वचनों का श्रद्धापूर्वक आचरण करने की कुशलता न आ जाए। (585)