सद्गुरु की एक हल्की-सी कृपा दृष्टि से ही शिष्य का शरीर और रूप दिव्य हो जाता है। फिर उसे अपने चारों ओर प्रभु की उपस्थिति दिखाई देने लगती है।
गुरु शब्द का ध्यान करने और उसकी शरण लेने से गुरु के उपदेश उसे प्रत्यक्ष हो जाते हैं। जब वह ईश्वरीय शब्द की अखंड ध्वनि सुनने की स्थिति में पहुँच जाता है, तो उसे उच्चतर संतुलन का आनंद मिलता है।
सच्चे गुरु के ज्ञान पर ध्यान केन्द्रित करने, उनकी सलाह सुनने, चिंतन करने तथा उनकी आज्ञा के अनुसार जीवन जीने से प्रेम की भावना बढ़ती है तथा खिलती है। और इस प्रेममय जीवन को जीने में गुरु-चेतन व्यक्ति को दिव्यता का बोध होता है।
जैसे भौंरा अमृत पीकर कमल पुष्प की पंखुड़ियों में बंद होकर दिव्य आनन्द प्राप्त करता है, वैसे ही अपने जीवन को आध्यात्मिक शांति प्रदान करने के लिए सच्चा साधक गुरु के चरण कमलों का आश्रय लेकर गहन पान करता है।