उस सनातन प्रभु के रहस्यों को कैसे ध्यान में लाया जा सकता है? उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। उसे शब्दों के माध्यम से कैसे समझाया जा सकता है?
हम अनंत प्रभु के पार के छोर तक कैसे पहुँच सकते हैं? अदृश्य प्रभु को कैसे दिखाया जा सकता है?
जो भगवान इंद्रियों और अनुभूतियों की पहुंच से परे हैं, उन्हें कैसे पकड़ा और जाना जा सकता है? भगवान स्वामी को किसी सहारे की जरूरत नहीं है। उनका सहारा किसे बनाया जा सकता है?
केवल गुरु-चेतन साधक ही उस अनंत प्रभु का अनुभव कर सकता है जो स्वयं उस अवस्था से गुजरता है और जो गुरु के अमृत-तुल्य वचनों में पूरी तरह से डूबा हुआ है। ऐसा गुरु-चेतन व्यक्ति अपने शरीर के बंधनों से मुक्त महसूस करता है। वह अपने आप में विलीन हो जाता है।