जिस प्रकार फल से वृक्ष उत्पन्न होता है और फल वृक्ष पर उगते हैं, उसी प्रकार यह क्रिया अद्भुत है और इसकी व्याख्या नहीं की जा सकती।
जैसे सुगंध चन्दन में होती है और चन्दन सुगंध में होता है, वैसे ही इस अद्भुत प्रदर्शन का रहस्य कोई नहीं जान सकता।
जैसे लकड़ी में आग होती है और लकड़ी ही आग है, वैसे ही यह नाटक भी कम अद्भुत नहीं है।
इसी प्रकार सच्चे गुरु का शब्द (नाम) है और सच्चे गुरु उसमें निवास करते हैं। सच्चे गुरु ही हमें दिव्य ज्ञान के परम और पारलौकिक स्वरूप पर मन को केन्द्रित करने का तरीका समझाते हैं। (608)