कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 608


ਜੈਸੇ ਫਲ ਤੇ ਬਿਰਖ ਬਿਰਖ ਤੇ ਹੋਤ ਫਲ ਅਦਭੁਤ ਗਤਿ ਕਛੁ ਕਹਤ ਨ ਆਵੈ ਜੀ ।
जैसे फल ते बिरख बिरख ते होत फल अदभुत गति कछु कहत न आवै जी ।

जिस प्रकार फल से वृक्ष उत्पन्न होता है और फल वृक्ष पर उगते हैं, उसी प्रकार यह क्रिया अद्भुत है और इसकी व्याख्या नहीं की जा सकती।

ਜੈਸੇ ਬਾਸ ਬਾਵਨ ਮੈ ਬਾਵਨ ਹੈ ਬਾਸ ਬਿਖੈ ਬਿਸਮ ਚਰਿਤ੍ਰ ਕੋਊ ਮਰਮ ਨ ਪਾਵੈ ਜੀ ।
जैसे बास बावन मै बावन है बास बिखै बिसम चरित्र कोऊ मरम न पावै जी ।

जैसे सुगंध चन्दन में होती है और चन्दन सुगंध में होता है, वैसे ही इस अद्भुत प्रदर्शन का रहस्य कोई नहीं जान सकता।

ਕਾਸ ਮੈ ਅਗਨਿ ਅਰ ਅਗਨਿ ਮੈ ਕਾਸ ਜੈਸੇ ਅਤਿ ਅਸਚਰਯ ਮਯ ਕੌਤਕ ਕਹਾਵੈ ਜੀ ।
कास मै अगनि अर अगनि मै कास जैसे अति असचरय मय कौतक कहावै जी ।

जैसे लकड़ी में आग होती है और लकड़ी ही आग है, वैसे ही यह नाटक भी कम अद्भुत नहीं है।

ਸਤਿਗੁਰ ਮਹਿ ਸਬਦ ਸਬਦ ਮਹਿ ਸਤਿਗੁਰ ਹੈ ਨਿਗੁਨ ਸਗੁਨ ਗ੍ਯਾਨ ਧ੍ਯਾਨ ਸਮਝਾਵੈ ਜੀ ।੬੦੮।
सतिगुर महि सबद सबद महि सतिगुर है निगुन सगुन ग्यान ध्यान समझावै जी ।६०८।

इसी प्रकार सच्चे गुरु का शब्द (नाम) है और सच्चे गुरु उसमें निवास करते हैं। सच्चे गुरु ही हमें दिव्य ज्ञान के परम और पारलौकिक स्वरूप पर मन को केन्द्रित करने का तरीका समझाते हैं। (608)