जिस प्रकार भुलक्कड़ व्यक्ति अपने गुरु की एक झलक पाने की उतनी ही तीव्र इच्छा नहीं रखता, जितनी तीव्र इच्छा से वह अन्य स्त्रियों को देखता है।
जिस प्रकार सांसारिक व्यक्ति दूसरों की निन्दा को बड़े ध्यान से सुनता है, उसी प्रकार वह गुरु के दिव्य वचनों को भी उतने ही प्रेम से नहीं सुनता।
जिस प्रकार धन का लोभी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से उसकी मेहनत की कमाई ठगने के लिए दूर-दूर तक घूमता रहता है, उसी प्रकार वह ईश्वरीय मण्डली में जाकर भगवान की स्तुति सुनने के लिए उतना उत्साह नहीं दिखाता।
मैं उल्लू की तरह गुरु के तेज का मूल्य नहीं जानता, कौए की तरह गुरु के मधुर गंध वाले गुणों को नहीं जानता, और न ही मैं नाम रूपी अमृत के स्वाद को जानता हूँ, जैसे साँप दूध रूपी अमृत को नहीं जानती। अतः मैं गुरु के तेज का मूल्य नहीं जान सकता।