जिस प्रकार दिन में उल्लू का दिखना किसी को भी पसंद नहीं आता, उसी प्रकार किसी देवता का अनुयायी होना भी सच्चे गुरु के शिष्य को उनकी पवित्र संगति में नापसंद होता है।
जिस प्रकार कौए की कांव-कांव किसी को पसन्द नहीं होती, उसी प्रकार भगवान के भक्त की भी भगवान तुल्य सच्चे गुरु की पवित्र सभा में पसन्द नहीं होती। (क्योंकि हो सकता है कि वह अपने देवता के बारे में अहंकारपूर्ण बातें कह रहा हो)
जैसे कुत्ता थपथपाने पर चाटता है और चिल्लाने या डांटने पर काटता है। (दोनों ही कार्य अच्छे नहीं हैं)
जैसे बगुला हंसों की टोली में नहीं समाता और वहाँ से निकाल दिया जाता है, वैसे ही किसी देवी-देवता का भक्त भगवान की पूजा करने वाले संतों की पवित्र सभा में नहीं समाता। ऐसे नकली भक्तों को इन सभाओं से निकाल देना चाहिए। (452)