कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 452


ਜੈਸੇ ਉਲੂ ਦਿਨ ਸਮੈ ਕਾਹੂਐ ਨ ਦੇਖਿਓ ਭਾਵੈ ਤੈਸੇ ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਮੈ ਆਨ ਦੇਵ ਸੇਵਕੈ ।
जैसे उलू दिन समै काहूऐ न देखिओ भावै तैसे साधसंगति मै आन देव सेवकै ।

जिस प्रकार दिन में उल्लू का दिखना किसी को भी पसंद नहीं आता, उसी प्रकार किसी देवता का अनुयायी होना भी सच्चे गुरु के शिष्य को उनकी पवित्र संगति में नापसंद होता है।

ਜੈਸੇ ਕਊਆ ਬਿਦਿਆਮਾਨ ਬੋਲਤ ਨ ਕਾਹੂ ਭਾਵੈ ਆਨ ਦੇਵ ਸੇਵਕ ਜਉ ਬੋਲੈ ਅਹੰਮੇਵ ਕੈ ।
जैसे कऊआ बिदिआमान बोलत न काहू भावै आन देव सेवक जउ बोलै अहंमेव कै ।

जिस प्रकार कौए की कांव-कांव किसी को पसन्द नहीं होती, उसी प्रकार भगवान के भक्त की भी भगवान तुल्य सच्चे गुरु की पवित्र सभा में पसन्द नहीं होती। (क्योंकि हो सकता है कि वह अपने देवता के बारे में अहंकारपूर्ण बातें कह रहा हो)

ਕਟਤ ਚਟਤ ਸ੍ਵਾਨ ਪ੍ਰੀਤਿ ਬਿਪ੍ਰੀਤਿ ਜੈਸੇ ਆਨ ਦੇਵ ਸੇਵਕ ਸੁਹਾਇ ਨ ਕਟੇਵ ਕੈ ।
कटत चटत स्वान प्रीति बिप्रीति जैसे आन देव सेवक सुहाइ न कटेव कै ।

जैसे कुत्ता थपथपाने पर चाटता है और चिल्लाने या डांटने पर काटता है। (दोनों ही कार्य अच्छे नहीं हैं)

ਜੈਸੇ ਮਰਾਲ ਮਾਲ ਸੋਭਤ ਨ ਬਗੁ ਠਗੁ ਕਾਢੀਐ ਪਕਰਿ ਕਰਿ ਆਨ ਦੇਵ ਸੇਵਕੈ ।੪੫੨।
जैसे मराल माल सोभत न बगु ठगु काढीऐ पकरि करि आन देव सेवकै ।४५२।

जैसे बगुला हंसों की टोली में नहीं समाता और वहाँ से निकाल दिया जाता है, वैसे ही किसी देवी-देवता का भक्त भगवान की पूजा करने वाले संतों की पवित्र सभा में नहीं समाता। ऐसे नकली भक्तों को इन सभाओं से निकाल देना चाहिए। (452)