कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 630


ਜੈਸੇ ਬਾਨ ਧਨੁਖ ਸਹਿਤ ਹ੍ਵੈ ਨਿਜ ਬਸ ਛੂਟਤਿ ਨ ਆਵੈ ਫੁਨ ਜਤਨ ਸੈ ਹਾਥ ਜੀ ।
जैसे बान धनुख सहित ह्वै निज बस छूटति न आवै फुन जतन सै हाथ जी ।

जिस प्रकार एक बाण जब तक धनुष में रहता है तब तक वह योद्धा के पूर्ण नियंत्रण में रहता है, किन्तु एक बार छूट जाने पर वह चाहे कितना भी प्रयत्न कर ले, वापस नहीं आ सकता।

ਜੈਸੇ ਬਾਘ ਬੰਧਸਾਲਾ ਬਿਖੈ ਬਾਧ੍ਯੋ ਰਹੈ ਪੁਨ ਖੁਲੈ ਤੋ ਨ ਆਵੈ ਬਸ ਬਸਹਿ ਨ ਸਾਥ ਜੀ ।
जैसे बाघ बंधसाला बिखै बाध्यो रहै पुन खुलै तो न आवै बस बसहि न साथ जी ।

जैसे शेर पिंजरे में बंद रहता है, लेकिन जब उसे छोड़ दिया जाता है तो उसे काबू में नहीं किया जा सकता। एक बार नियंत्रण से बाहर हो जाने पर उसे वश में नहीं किया जा सकता।

ਜੈਸੇ ਦੀਪ ਦਿਪਤ ਨ ਜਾਨੀਐ ਭਵਨ ਬਿਖੈ ਦਾਵਾਨਲ ਭਏ ਨ ਦੁਰਾਏ ਦੁਰੈ ਨਾਥ ਜੀ ।
जैसे दीप दिपत न जानीऐ भवन बिखै दावानल भए न दुराए दुरै नाथ जी ।

जैसे जलते हुए दीपक की गर्मी घर में किसी को महसूस नहीं होती, लेकिन अगर वह जंगल की आग बन जाए (घर में फैल जाए) तो बेकाबू हो जाती है।

ਤੈਸੇ ਮੁਖ ਮਧ ਬਾਣੀ ਬਸਤ ਨ ਕੋਊ ਲਖੈ ਬੋਲੀਐ ਬਿਚਾਰ ਗੁਰਮਤਿ ਗੁਨ ਗਾਥ ਜੀ ।੬੩੦।
तैसे मुख मध बाणी बसत न कोऊ लखै बोलीऐ बिचार गुरमति गुन गाथ जी ।६३०।

इसी प्रकार, किसी की ज़ुबान पर क्या लिखा है, यह कोई नहीं जान सकता। धनुष से निकले तीर की तरह, बोले गए शब्द वापस नहीं लिए जा सकते। इसलिए हमेशा सोच-समझकर बोलना चाहिए कि हम क्या बोलने जा रहे हैं और सारी बातचीत मन के मुताबिक होनी चाहिए।