हे मित्र! जो अतीन्द्रिय हैं, जिन्हें कोई धोखा नहीं दे सकता। वे अविनाशी हैं, जिन्होंने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत को वश में कर लिया है, उन्हें तुम किस अमृत से मोहित कर पाए हो?
हे मित्र! जो सनक, सनन्दन तथा ब्रह्म का चिन्तन करने वालों को भी साक्षात्कार नहीं हुआ, उसे किस अलंकार और श्रृंगार ने तुम्हारे पास आकर्षित किया है?
हे मित्र! जिस प्रभु की स्तुति वेद और शेषनाग भिन्न-भिन्न शब्दों में कर रहे हैं, वह कौन से पुण्य के कारण आपकी स्तुति कर रहे हैं?
जिस भगवान् को देवता, मनुष्य और नाथों ने भी अथक परिश्रम करके नहीं पाया, वह किस प्रेम से आपको खोज रहा है? (647)