भगवान की अद्भुत सृष्टि का चित्र आश्चर्य और विस्मय से भरा है। इस एक चित्र में उन्होंने इतनी विविधताएं कैसे बिखेर दी हैं?
उसने आँखों में देखने की, कानों में सुनने की, नासिका में सूँघने की तथा जीभ में स्वाद लेने और स्वाद लेने की शक्ति भर दी है।
यह समझना कठिन है कि इनमें से प्रत्येक इन्द्रिय में इतना अंतर है कि एक इन्द्रिय दूसरी इन्द्रिय के कार्य में कैसे संलग्न है, इसका पता ही नहीं चलता।
जो भगवान् की सृष्टि का चित्र समझ से परे है, फिर उसके रचयिता और उसकी रचना को कैसे समझा जा सकता है? वह तीनों कालों में असीम, अनन्त है और बारम्बार नमस्कार करने योग्य है। (२३२)