कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 232


ਰਚਨਾ ਚਰਿਤ੍ਰ ਚਿਤ੍ਰ ਬਿਸਮ ਬਚਿਤ੍ਰਪਨ ਏਕ ਮੈ ਅਨੇਕ ਭਾਂਤਿ ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਕਾਰ ਹੈ ।
रचना चरित्र चित्र बिसम बचित्रपन एक मै अनेक भांति अनिक प्रकार है ।

भगवान की अद्भुत सृष्टि का चित्र आश्चर्य और विस्मय से भरा है। इस एक चित्र में उन्होंने इतनी विविधताएं कैसे बिखेर दी हैं?

ਲੋਚਨ ਮੈ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਸ੍ਰਵਨ ਮੈ ਸੁਰਤਿ ਰਾਖੀ ਨਾਸਕਾ ਸੁਬਾਸ ਰਸ ਰਸਨਾ ਉਚਾਰ ਹੈ ।
लोचन मै द्रिसटि स्रवन मै सुरति राखी नासका सुबास रस रसना उचार है ।

उसने आँखों में देखने की, कानों में सुनने की, नासिका में सूँघने की तथा जीभ में स्वाद लेने और स्वाद लेने की शक्ति भर दी है।

ਅੰਤਰ ਹੀ ਅੰਤਰ ਨਿਰੰਤਰੀਨ ਸੋਤ੍ਰਨ ਮੈ ਕਾਹੂ ਕੀ ਨ ਕੋਊ ਜਾਨੈ ਬਿਖਮ ਬੀਚਾਰ ਹੈ ।
अंतर ही अंतर निरंतरीन सोत्रन मै काहू की न कोऊ जानै बिखम बीचार है ।

यह समझना कठिन है कि इनमें से प्रत्येक इन्द्रिय में इतना अंतर है कि एक इन्द्रिय दूसरी इन्द्रिय के कार्य में कैसे संलग्न है, इसका पता ही नहीं चलता।

ਅਗਮ ਚਰਿਤ੍ਰ ਚਿਤ੍ਰ ਜਾਨੀਐ ਚਿਤੇਰੋ ਕੈਸੋ ਨੇਤ ਨੇਤ ਨੇਤ ਨਮੋ ਨਮੋ ਨਮਸਕਾਰਿ ਹੈ ।੨੩੨।
अगम चरित्र चित्र जानीऐ चितेरो कैसो नेत नेत नेत नमो नमो नमसकारि है ।२३२।

जो भगवान् की सृष्टि का चित्र समझ से परे है, फिर उसके रचयिता और उसकी रचना को कैसे समझा जा सकता है? वह तीनों कालों में असीम, अनन्त है और बारम्बार नमस्कार करने योग्य है। (२३२)