मेरे कान मेरे प्रियतम के वियोग की बात सुनकर बहरे क्यों नहीं हो गए? मैं कैसी पतिव्रता और निष्ठावान पत्नी हूँ और मैंने कैसा पतिव्रता धर्म (जीवन-शैली) अपना लिया है?
जब मेरा प्रियतम मेरी दृष्टि से ओझल हो रहा था, तब मैं अंधा क्यों नहीं हो गया? मैं कैसा प्रियतम हूँ? मैंने प्रेम को लज्जित किया है।
मेरा जीवन क्षीण हो रहा है और मेरे प्रभु का वियोग मुझे परेशान कर रहा है। यह कैसा वियोग है? वियोग की पीड़ा ने मुझे बेचैन कर दिया है।
मेरा हृदय क्यों नहीं फटा, यह संदेश पाकर कि मेरा प्रियतम मुझसे दूर कहीं और रहेगा? क्या-क्या भूलें हुईं, मैं गिनाऊँ और याद करूँ, इसका उत्तर मेरे पास नहीं है। (६६७)