जिस प्रकार वृक्ष व अन्य वनस्पतियां फल व फूल के लिए उगते हैं, किन्तु जैसे ही उनमें फल लगते हैं, उनके पत्ते व फल गिर जाते हैं।
जिस प्रकार एक पत्नी अपने पति के प्रेम के लिए स्वयं को सजाती-संवारती है, किन्तु उसके आलिंगन में उसे अपने गले का हार भी पसंद नहीं आता, क्योंकि वह उनके पूर्ण मिलन में बाधक माना जाता है।
जिस प्रकार एक मासूम बच्चा बचपन में अनेक खेल खेलता है, लेकिन बड़ा होने पर सब भूल जाता है।
इसी प्रकार ज्ञान प्राप्ति के लिए जो छह प्रकार के धर्म-कर्म यत्नपूर्वक किए जाते हैं, वे गुरु के महान ज्ञान के सूर्य के समान चमकने पर तारों के समान लुप्त हो जाते हैं। वे सब कर्म व्यर्थ प्रतीत होते हैं। सगले करम धरम जुग सोधे। बिन(उ) नव