कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 405


ਜੈਸੇ ਬਨ ਰਾਇ ਪਰਫੁਲਤ ਫਲ ਨਮਿਤਿ ਲਾਗਤ ਹੀ ਫਲ ਪਤ੍ਰ ਪੁਹਪ ਬਿਲਾਤ ਹੈ ।
जैसे बन राइ परफुलत फल नमिति लागत ही फल पत्र पुहप बिलात है ।

जिस प्रकार वृक्ष व अन्य वनस्पतियां फल व फूल के लिए उगते हैं, किन्तु जैसे ही उनमें फल लगते हैं, उनके पत्ते व फल गिर जाते हैं।

ਜੈਸੇ ਤ੍ਰੀਆ ਰਚਤ ਸਿੰਗਾਰ ਭਰਤਾਰ ਹੇਤਿ ਭੇਟਤ ਭਰਤਾਰ ਉਰ ਹਾਰ ਨ ਸਮਾਤ ਹੈ ।
जैसे त्रीआ रचत सिंगार भरतार हेति भेटत भरतार उर हार न समात है ।

जिस प्रकार एक पत्नी अपने पति के प्रेम के लिए स्वयं को सजाती-संवारती है, किन्तु उसके आलिंगन में उसे अपने गले का हार भी पसंद नहीं आता, क्योंकि वह उनके पूर्ण मिलन में बाधक माना जाता है।

ਬਾਲਕ ਅਚੇਤ ਜੈਸੇ ਕਰਤ ਲੀਲਾ ਅਨੇਕ ਸੁਚਿਤ ਚਿੰਤਨ ਭਏ ਸਭੈ ਬਿਸਰਾਤ ਹੈ ।
बालक अचेत जैसे करत लीला अनेक सुचित चिंतन भए सभै बिसरात है ।

जिस प्रकार एक मासूम बच्चा बचपन में अनेक खेल खेलता है, लेकिन बड़ा होने पर सब भूल जाता है।

ਤੈਸੇ ਖਟ ਕਰਮ ਧਰਮ ਸ੍ਰਮ ਗਿਆਨ ਕਾਜ ਗਿਆਨ ਭਾਨ ਉਦੈ ਉਡ ਕਰਮ ਉਡਾਤ ਹੈ ।੪੦੫।
तैसे खट करम धरम स्रम गिआन काज गिआन भान उदै उड करम उडात है ।४०५।

इसी प्रकार ज्ञान प्राप्ति के लिए जो छह प्रकार के धर्म-कर्म यत्नपूर्वक किए जाते हैं, वे गुरु के महान ज्ञान के सूर्य के समान चमकने पर तारों के समान लुप्त हो जाते हैं। वे सब कर्म व्यर्थ प्रतीत होते हैं। सगले करम धरम जुग सोधे। बिन(उ) नव