कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 155


ਜੈਸੇ ਸੂਆ ਉਡਤ ਫਿਰਤ ਬਨ ਬਨ ਪ੍ਰਤਿ ਜੈਸੇ ਈ ਬਿਰਖ ਬੈਠੇ ਤੈਸੋ ਫਲੁ ਚਾਖਈ ।
जैसे सूआ उडत फिरत बन बन प्रति जैसे ई बिरख बैठे तैसो फलु चाखई ।

जैसे तोता एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर उड़ता है और वहां लगे फल खाता है;

ਪਰ ਬਸਿ ਹੋਇ ਜੈਸੀ ਜੈਸੀ ਐ ਸੰਗਤਿ ਮਿਲੈ ਸੁਨਿ ਉਪਦੇਸ ਤੈਸੀ ਭਾਖਾ ਲੈ ਸੁ ਭਾਖਈ ।
पर बसि होइ जैसी जैसी ऐ संगति मिलै सुनि उपदेस तैसी भाखा लै सु भाखई ।

कैद में तोता वह भाषा बोलता है जो वह अपने साथियों से सीखता है;

ਤੈਸੇ ਚਿਤ ਚੰਚਲ ਚਪਲ ਜਲ ਕੋ ਸੁਭਾਉ ਜੈਸੇ ਰੰਗ ਸੰਗ ਮਿਲੈ ਤੈਸੇ ਰੰਗ ਰਾਖਈ ।
तैसे चित चंचल चपल जल को सुभाउ जैसे रंग संग मिलै तैसे रंग राखई ।

इस चंचल मन की प्रकृति भी जल की तरह ही अस्थिर और अस्थाई है, क्योंकि यह जिस रंग में मिल जाता है, उसी रंग को ग्रहण कर लेता है।

ਅਧਮ ਅਸਾਧ ਜੈਸੇ ਬਾਰੁਨੀ ਬਿਨਾਸ ਕਾਲ ਸਾਧਸੰਗ ਗੰਗ ਮਿਲਿ ਸੁਜਨ ਭਿਲਾਖਈ ।੧੫੫।
अधम असाध जैसे बारुनी बिनास काल साधसंग गंग मिलि सुजन भिलाखई ।१५५।

नीच और पापी मनुष्य मृत्युशैया पर मदिरा की इच्छा करता है, जबकि सज्जन मनुष्य संसार से विदा होने के समय सज्जन और साधु पुरुषों की संगति की इच्छा करता है। (155)