कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 507


ਚੰਦਨ ਸਮੀਪ ਬਸਿ ਬਾਂਸ ਮਹਿਮਾ ਨ ਜਾਨੀ ਆਨ ਦ੍ਰੁਮ ਦੂਰਹ ਭਏ ਬਾਸਨ ਕੈ ਬੋਹੈ ਹੈ ।
चंदन समीप बसि बांस महिमा न जानी आन द्रुम दूरह भए बासन कै बोहै है ।

चन्दन के समीप रहते हुए भी बांस उसकी सुगंध फैलाने की विशेषता को नहीं समझ पाता, जबकि अन्य वृक्ष उससे दूर रहते हुए भी उतने ही सुगंधित हो जाते हैं।

ਦਾਦਰ ਸਰੋਵਰ ਮੈ ਜਾਨੀ ਨ ਕਮਲ ਗਤਿ ਮਧੁਕਰ ਮਨ ਮਕਰੰਦ ਕੈ ਬਿਮੋਹੇ ਹੈ ।
दादर सरोवर मै जानी न कमल गति मधुकर मन मकरंद कै बिमोहे है ।

तालाब में रहने वाला मेंढक कभी भी कमल के फूल की विशेषताओं की सराहना नहीं कर पाता, जबकि भौंरा उससे दूर रहते हुए भी उसकी मधुर गंध की ओर आकर्षित होता है।

ਤੀਰਥ ਬਸਤ ਬਗੁ ਮਰਮੁ ਨ ਜਾਨਿਓ ਕਛੁ ਸਰਧਾ ਕੈ ਜਾਤ੍ਰਾ ਹੇਤ ਜਾਤ੍ਰੀ ਜਨ ਸੋਹੇ ਹੈ ।
तीरथ बसत बगु मरमु न जानिओ कछु सरधा कै जात्रा हेत जात्री जन सोहे है ।

पवित्र स्थानों पर रहने वाले बगुले को इन तीर्थ स्थानों के आध्यात्मिक महत्व का एहसास नहीं होता, जबकि श्रद्धालु यात्री वहां से लौटने पर अच्छा नाम कमाते हैं।

ਨਿਕਟਿ ਬਸਤ ਮਮ ਗੁਰ ਉਪਦੇਸ ਹੀਨ ਦੂਰੰਤਰਿ ਸਿਖਿ ਉਰਿ ਅੰਤਰਿ ਲੈ ਪੋਹੇ ਹੈ ।੫੦੭।
निकटि बसत मम गुर उपदेस हीन दूरंतरि सिखि उरि अंतरि लै पोहे है ।५०७।

इसी प्रकार मैं भी बांस, मेंढक और बगुले की तरह गुरु के समीप रहते हुए भी गुरु की शिक्षाओं का पालन करने से वंचित हूँ। इसके विपरीत दूर-दूर रहने वाले सिख गुरु की विद्या प्राप्त करके उसे अपने हृदय में धारण करके उसका पालन करते हैं। (507)