जैसे दुर्गन्धयुक्त मदिरा गंगा नदी में डालने पर गंगाजल के समान हो जाती है, वैसे ही माया में डूबे हुए, सांसारिक सुख चाहने वाले व्यक्ति भी भगवान की सच्ची, नाम में डूबी हुई पवित्र संगति में आकर नाम सिमरन के रंग में रंग जाते हैं।
जिस प्रकार गंगा जैसी नदियाँ और नाले अपने सभी विनाशकारी गुणों को खोकर विशाल महासागर में विलीन हो जाते हैं, उसी प्रकार सच्चे, प्रेमपूर्ण और समर्पित सिखों की संगति करके कोई भी व्यक्ति सतगुरु की तरह महासागर में समा सकता है।
मन सद्गुरु के चरणों की सुगन्धित धूलि में स्थिर हो जाता है। उसकी चेतना में अनंत गुणगान की झलक, नाम की असंख्य रंग-बिरंगी लहरें प्रकट होने लगती हैं।
नाम सिमरन के प्रभाव से तथा चेतना में अखंड संगीत के प्रकट होने से सिख को लगता है कि उसे संसार की सभी निधियाँ प्राप्त हो गई हैं। उसे सच्चे गुरु का ज्ञान प्राप्त होता है जो उसके रोम-रोम में झलकता है। (88)