कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 88


ਗੁਰਸਿਖ ਸਾਧਸੰਗ ਰੰਗ ਮੈ ਰੰਗੀਲੇ ਭਏ ਬਾਰਨੀ ਬਿਗੰਧ ਗੰਗ ਸੰਗ ਮਿਲਿ ਗੰਗ ਹੈ ।
गुरसिख साधसंग रंग मै रंगीले भए बारनी बिगंध गंग संग मिलि गंग है ।

जैसे दुर्गन्धयुक्त मदिरा गंगा नदी में डालने पर गंगाजल के समान हो जाती है, वैसे ही माया में डूबे हुए, सांसारिक सुख चाहने वाले व्यक्ति भी भगवान की सच्ची, नाम में डूबी हुई पवित्र संगति में आकर नाम सिमरन के रंग में रंग जाते हैं।

ਸੁਰਸੁਰੀ ਸੰਗਮ ਹੁਇ ਪ੍ਰਬਲ ਪ੍ਰਵਾਹ ਲਿਵ ਸਾਗਰ ਅਥਾਹ ਸਤਿਗੁਰ ਸੰਗ ਸੰਗਿ ਹੈ ।
सुरसुरी संगम हुइ प्रबल प्रवाह लिव सागर अथाह सतिगुर संग संगि है ।

जिस प्रकार गंगा जैसी नदियाँ और नाले अपने सभी विनाशकारी गुणों को खोकर विशाल महासागर में विलीन हो जाते हैं, उसी प्रकार सच्चे, प्रेमपूर्ण और समर्पित सिखों की संगति करके कोई भी व्यक्ति सतगुरु की तरह महासागर में समा सकता है।

ਚਰਨ ਕਮਲ ਮਕਰੰਦ ਨਿਹਚਲ ਚਿਤ ਦਰਸਨ ਸੋਭਾ ਨਿਧਿ ਲਹਰਿ ਤਰੰਗ ਹੈ ।
चरन कमल मकरंद निहचल चित दरसन सोभा निधि लहरि तरंग है ।

मन सद्गुरु के चरणों की सुगन्धित धूलि में स्थिर हो जाता है। उसकी चेतना में अनंत गुणगान की झलक, नाम की असंख्य रंग-बिरंगी लहरें प्रकट होने लगती हैं।

ਅਨਹਦ ਸਬਦ ਕੈ ਸਰਬਿ ਨਿਧਾਨ ਦਾਨ ਗਿਆਨ ਅੰਸ ਹੰਸ ਗਤਿ ਸੁਮਤਿ ਸ੍ਰਬੰਗ ਹੈ ।੮੮।
अनहद सबद कै सरबि निधान दान गिआन अंस हंस गति सुमति स्रबंग है ।८८।

नाम सिमरन के प्रभाव से तथा चेतना में अखंड संगीत के प्रकट होने से सिख को लगता है कि उसे संसार की सभी निधियाँ प्राप्त हो गई हैं। उसे सच्चे गुरु का ज्ञान प्राप्त होता है जो उसके रोम-रोम में झलकता है। (88)