कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 140


ਦਰਸਨ ਜੋਤਿ ਕੋ ਉਦੋਤ ਅਸਚਰਜ ਮੈ ਤਾਮੈ ਤਿਲ ਛਬਿ ਪਰਮਦਭੁਤ ਛਕਿ ਹੈ ।
दरसन जोति को उदोत असचरज मै तामै तिल छबि परमदभुत छकि है ।

सच्चे गुरु के प्रकाश की दिव्य चमक अद्भुत है। उस प्रकाश का एक छोटा सा हिस्सा भी सुंदर, अद्भुत और अनोखा है।

ਦੇਖਬੇ ਕਉ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਨ ਸੁਨਬੇ ਕਉ ਸੁਰਤਿ ਹੈ ਕਹਿਬੇ ਕਉ ਜਿਹਬਾ ਨ ਗਿਆਨ ਮੈ ਉਕਤਿ ਹੈ ।
देखबे कउ द्रिसटि न सुनबे कउ सुरति है कहिबे कउ जिहबा न गिआन मै उकति है ।

आँखों में देखने की शक्ति नहीं है, कानों में सुनने की शक्ति नहीं है और जीभ में उस दिव्य प्रकाश की सुन्दरता का वर्णन करने की शक्ति नहीं है। और न ही संसार में उसका वर्णन करने के लिए शब्द हैं।

ਸੋਭਾ ਕੋਟਿ ਸੋਭ ਲੋਭ ਲੁਭਿਤ ਹੁਇ ਲੋਟ ਪੋਟ ਜਗਮਗ ਜੋਤਿ ਕੋਟਿ ਓਟਿ ਲੈ ਛਿਪਤਿ ਹੈ ।
सोभा कोटि सोभ लोभ लुभित हुइ लोट पोट जगमग जोति कोटि ओटि लै छिपति है ।

असंख्य स्तुतियाँ, जगमगाते दीपों की रोशनी इस अलौकिक प्रकाश के आगे पर्दे के पीछे छिप जाती है।

ਅੰਗ ਅੰਗ ਪੇਖ ਮਨ ਮਨਸਾ ਥਕਤ ਭਈ ਨੇਤ ਨੇਤ ਨਮੋ ਨਮੋ ਅਤਿ ਹੂ ਤੇ ਅਤਿ ਹੈ ।੧੪੦।
अंग अंग पेख मन मनसा थकत भई नेत नेत नमो नमो अति हू ते अति है ।१४०।

उस दिव्य तेज की क्षणिक झलक ही मन की समस्त धारणाओं और विकल्पों का अन्त कर देती है। ऐसी झलक की महिमा अनन्त, अत्यन्त अद्भुत और अद्भुत है। अतः उन्हें बारम्बार नमस्कार करना चाहिए। (140)