कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 549


ਕਾਹੂ ਦਸਾ ਕੇ ਪਵਨ ਗਵਨ ਕੈ ਬਰਖਾ ਹੈ ਕਾਹੂ ਦਸਾ ਕੇ ਪਵਨ ਬਾਦਰ ਬਿਲਾਤ ਹੈ ।
काहू दसा के पवन गवन कै बरखा है काहू दसा के पवन बादर बिलात है ।

जैसे एक विशेष दिशा से बहने वाली हवा वर्षा लाती है, जबकि दूसरी दिशा से बहने वाली हवा बादलों को उड़ा ले जाती है।

ਕਾਹੂ ਜਲ ਪਾਨ ਕੀਏ ਰਹਤ ਅਰੋਗ ਦੋਹੀ ਕਾਹੂ ਜਲ ਪਾਨ ਬਿਆਪੇ ਬ੍ਰਿਥਾ ਬਿਲਲਾਤ ਹੈ ।
काहू जल पान कीए रहत अरोग दोही काहू जल पान बिआपे ब्रिथा बिललात है ।

जिस प्रकार कुछ पानी पीने से शरीर स्वस्थ रहता है, जबकि कुछ पानी पीने से बीमार पड़ जाता है। यह रोगी को बहुत परेशान करता है।

ਕਾਹੂ ਗ੍ਰਿਹ ਕੀ ਅਗਨਿ ਪਾਕ ਸਾਕ ਸਿਧਿ ਕਰੈ ਕਾਹੂ ਗ੍ਰਿਹ ਕੀ ਅਗਨਿ ਭਵਨੁ ਜਰਾਤ ਹੈ ।
काहू ग्रिह की अगनि पाक साक सिधि करै काहू ग्रिह की अगनि भवनु जरात है ।

जिस प्रकार एक घर की आग खाना बनाने में सहायक होती है, किन्तु दूसरे घर में लगी आग उस घर को जलाकर राख कर देती है।

ਕਾਹੂ ਕੀ ਸੰਗਤ ਮਿਲਿ ਜੀਵਨ ਮੁਕਤਿ ਹੁਇ ਕਾਹੂ ਕੀ ਸੰਗਤਿ ਮਿਲਿ ਜਮੁਪੁਰਿ ਜਾਤ ਹੈ ।੫੪੯।
काहू की संगत मिलि जीवन मुकति हुइ काहू की संगति मिलि जमुपुरि जात है ।५४९।

इसी प्रकार किसी की संगति मुक्ति देती है, तो किसी की संगति नरक में ले जाती है। (549)