जब दृष्टि पवित्र लोगों की संगति पर टिक जाती है, तो मनुष्य की चेतना भगवान से जुड़ जाती है। वही दृष्टि स्वेच्छाचारी लोगों की संगति में दुर्गुणों में बदल जाती है।
पवित्र संगति में, सच्चे गुरु के वचनों और चेतना के मिलन से ईश्वर का साक्षात्कार होता है। लेकिन वही चेतना, बदनाम लोगों की संगति में अहंकार और कलह का कारण बन जाती है।
गुरु-चेतन व्यक्तियों की संगति से जीवन में सरलता आती है और भोजन परम पुण्यमय हो जाता है, किन्तु कुपथ और स्वेच्छाचारी लोगों की संगति में (मांसाहार आदि का) भोजन दुःखदायी और कष्टदायक हो जाता है।
नीच बुद्धि के कारण स्वेच्छाचारी लोगों की संगति बार-बार जन्म-मरण का कारण बनती है। इसके विपरीत गुरु की बुद्धि को अपनाना तथा साधु पुरुषों की संगति करना मोक्ष का कारण बनता है। (175)