कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 175


ਸਾਧੁ ਸੰਗਿ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਦਰਸ ਕੈ ਬ੍ਰਹਮ ਧਿਆਨ ਸੋਈ ਤਉ ਅਸਾਧਿ ਸੰਗਿ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਬਿਕਾਰ ਹੈ ।
साधु संगि द्रिसटि दरस कै ब्रहम धिआन सोई तउ असाधि संगि द्रिसटि बिकार है ।

जब दृष्टि पवित्र लोगों की संगति पर टिक जाती है, तो मनुष्य की चेतना भगवान से जुड़ जाती है। वही दृष्टि स्वेच्छाचारी लोगों की संगति में दुर्गुणों में बदल जाती है।

ਸਾਧੁ ਸੰਗਿ ਸਬਦ ਸੁਰਤਿ ਕੈ ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨ ਸੋਈ ਤਉ ਅਸਾਧ ਸੰਗਿ ਬਾਦੁ ਅਹੰਕਾਰ ਹੈ ।
साधु संगि सबद सुरति कै ब्रहम गिआन सोई तउ असाध संगि बादु अहंकार है ।

पवित्र संगति में, सच्चे गुरु के वचनों और चेतना के मिलन से ईश्वर का साक्षात्कार होता है। लेकिन वही चेतना, बदनाम लोगों की संगति में अहंकार और कलह का कारण बन जाती है।

ਸਾਧੁ ਸੰਗਿ ਅਸਨ ਬਸਨ ਕੈ ਮਹਾ ਪ੍ਰਸਾਦ ਸੋਈ ਤਉ ਅਸਾਧ ਸੰਗਿ ਬਿਕਮ ਅਹਾਰ ਹੈ ।
साधु संगि असन बसन कै महा प्रसाद सोई तउ असाध संगि बिकम अहार है ।

गुरु-चेतन व्यक्तियों की संगति से जीवन में सरलता आती है और भोजन परम पुण्यमय हो जाता है, किन्तु कुपथ और स्वेच्छाचारी लोगों की संगति में (मांसाहार आदि का) भोजन दुःखदायी और कष्टदायक हो जाता है।

ਦੁਰਮਤਿ ਜਨਮ ਮਰਨ ਹੁਇ ਅਸਾਧ ਸੰਗਿ ਗੁਰਮਤਿ ਸਾਧਸੰਗਿ ਮੁਕਤਿ ਦੁਆਰ ਹੈ ।੧੭੫।
दुरमति जनम मरन हुइ असाध संगि गुरमति साधसंगि मुकति दुआर है ।१७५।

नीच बुद्धि के कारण स्वेच्छाचारी लोगों की संगति बार-बार जन्म-मरण का कारण बनती है। इसके विपरीत गुरु की बुद्धि को अपनाना तथा साधु पुरुषों की संगति करना मोक्ष का कारण बनता है। (175)