जिस प्रकार घर में रहना, नहाना, खाना-पीना, सोना आदि तथा सामाजिक रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुसार अपने सांसारिक कर्तव्यों का निर्वहन करना, ये सभी एक पतिव्रता और निष्ठावान पत्नी के लिए पवित्र हैं।
माता-पिता, भाई-बहन, पुत्र, परिवार के अन्य बुजुर्गों, मित्रों और अन्य सामाजिक संपर्कों की सेवा और सम्मान करने के साथ-साथ अपने पति की खुशी के लिए स्वयं को आभूषणों से सुसज्जित करना उसका स्वाभाविक कर्तव्य है।
घर के काम-काज में शामिल होना, बच्चे पैदा करना, उनका पालन-पोषण करना, उन्हें साफ-सुथरा रखना, ये सभी कार्य एक वफादार और निष्ठावान पत्नी के लिए पवित्र हैं।
इसी प्रकार गुरु के शिष्य भी गृहस्थ जीवन जीते हुए कभी कलंकित नहीं होते। वे पतिव्रता पत्नी की भाँति गुरु को छोड़कर अन्य किसी देवता की पूजा करना संसार में निन्दनीय समझते हैं। (४८३)