गुरु की शिक्षा के बिना तथा अकेले ही घर के सभी कार्यों में लिप्त गृहस्थ व्यक्ति न तो भगवान से एकत्व की स्थिति तक पहुंच सकता है और न ही संसार का त्याग करके तथा जंगल में रहकर भी उन्हें प्राप्त कर सकता है।
विद्वान बनकर, शास्त्र पढ़कर कोई भी भगवान की महिमा को नहीं जान सकता, उनका वर्णन नहीं कर सकता, न ही योगाभ्यास करके कोई भगवान में लीन हो सकता है।
योगी, नाथ अपनी कठिन योग साधनाओं से उन्हें प्राप्त नहीं कर सकते, न ही उन्हें यज्ञ आदि करके प्राप्त किया जा सकता है।
देवी-देवताओं की सेवा करने से अहंकार से छुटकारा नहीं मिल सकता। इन देवी-देवताओं के समक्ष की जाने वाली पूजा-अर्चना और चढ़ावा केवल अहंकार को बढ़ाता है। भगवान जो पहुंच और वर्णन से परे हैं, उन तक केवल भगवान की शिक्षाओं, ज्ञान और बुद्धि से ही पहुंचा जा सकता है।