कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 670


ਇਕ ਟਕ ਧ੍ਯਾਨ ਹੁਤੇ ਚੰਦ੍ਰਮੇ ਚਕੋਰ ਗਤਿ ਪਲ ਨ ਲਗਤ ਸ੍ਵਪਨੈ ਹੂੰ ਨ ਦਿਖਾਈਐ ।
इक टक ध्यान हुते चंद्रमे चकोर गति पल न लगत स्वपनै हूं न दिखाईऐ ।

मैं अपने प्यारे भगवान को बिना पलक झपकाए देख लेता था जैसे एक सुर्ख लाल शेर चाँद को देखता है। पहले कोई रुकावट नहीं होती थी। लेकिन अब मैं उन्हें सपने में भी नहीं देखता।

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਬਚਨ ਧੁਨਿ ਸੁਨਤਿ ਹੀ ਬਿਦ੍ਯਮਾਨ ਤਾ ਮੁਖ ਸੰਦੇਸੋ ਪਥਕਨ ਪੈ ਨ ਪਾਈਐ ।
अंम्रित बचन धुनि सुनति ही बिद्यमान ता मुख संदेसो पथकन पै न पाईऐ ।

पहले तो मैं उनके मुख से अपने प्रियतम के मधुर वचनों की धुन सुनता था, परन्तु अब तो मुझे इस ओर आने-जाने वाले राहगीरों से भी उनके सन्देश प्राप्त नहीं होते।

ਸਿਹਜਾ ਸਮੈ ਨ ਉਰ ਅੰਤਰ ਸਮਾਤੋ ਹਾਰ ਅਨਿਕ ਪਹਾਰ ਓਟ ਭਏ ਕੈਸੇ ਜਾਈਐ ।
सिहजा समै न उर अंतर समातो हार अनिक पहार ओट भए कैसे जाईऐ ।

पहले तो विवाह-शय्या पर मिलते समय मेरे गले में पड़े हार का भी हस्तक्षेप हमारे बीच बर्दाश्त नहीं होता था, पर अब तो हमारे बीच पहाड़-सी रीति-रिवाज आ गए हैं। मैं उन्हें कैसे नीचे लाकर अपने प्रियतम प्रभु तक कैसे पहुँचूँ?

ਸਹਜ ਸੰਜੋਗ ਭੋਗ ਰਸ ਪਰਤਾਪ ਹੁਤੇ ਬਿਰਹ ਬਿਯੋਗ ਸੋਗ ਰੋਗ ਬਿਲਲਾਈਐ ।੬੭੦।
सहज संजोग भोग रस परताप हुते बिरह बियोग सोग रोग बिललाईऐ ।६७०।

पहले अपनी आध्यात्मिक शांति में, मुझे उनके निकट होने का सुख और आनंद मिलता था, लेकिन अब मैं वियोग की पीड़ा से रो रहा हूँ। (670)