मैं अपने प्यारे भगवान को बिना पलक झपकाए देख लेता था जैसे एक सुर्ख लाल शेर चाँद को देखता है। पहले कोई रुकावट नहीं होती थी। लेकिन अब मैं उन्हें सपने में भी नहीं देखता।
पहले तो मैं उनके मुख से अपने प्रियतम के मधुर वचनों की धुन सुनता था, परन्तु अब तो मुझे इस ओर आने-जाने वाले राहगीरों से भी उनके सन्देश प्राप्त नहीं होते।
पहले तो विवाह-शय्या पर मिलते समय मेरे गले में पड़े हार का भी हस्तक्षेप हमारे बीच बर्दाश्त नहीं होता था, पर अब तो हमारे बीच पहाड़-सी रीति-रिवाज आ गए हैं। मैं उन्हें कैसे नीचे लाकर अपने प्रियतम प्रभु तक कैसे पहुँचूँ?
पहले अपनी आध्यात्मिक शांति में, मुझे उनके निकट होने का सुख और आनंद मिलता था, लेकिन अब मैं वियोग की पीड़ा से रो रहा हूँ। (670)