कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 623


ਨਿੰਦ੍ਰਾ ਮੈ ਕਹਾ ਧਉ ਜਾਇ ਖੁਧਯਾ ਮੈ ਕਹਾ ਧਉ ਖਾਇ ਤ੍ਰਿਖਾ ਮੈ ਕਹਾ ਜਰਾਇ ਕਹਾ ਜਲ ਪਾਨ ਹੈ ।
निंद्रा मै कहा धउ जाइ खुधया मै कहा धउ खाइ त्रिखा मै कहा जराइ कहा जल पान है ।

सोते हुए मनुष्य कहाँ पहुँचता है? भूख लगने पर वह कैसे खाता है? प्यास लगने पर वह कैसे तृप्त होती है? और पीया हुआ जल कहाँ शांति प्रदान करता है?

ਹਸਨ ਰੋਵਨ ਕਹਾ ਕਹਾ ਪੁਨ ਚਿੰਤਾ ਚਾਉ ਕਹਾਂ ਭਯ ਭਾਉ ਭੀਰ ਕਹਾ ਧਉ ਭਯਾਨ ਹੈ ।
हसन रोवन कहा कहा पुन चिंता चाउ कहां भय भाउ भीर कहा धउ भयान है ।

यह कैसे रोता है या हंसता है? फिर चिंता और उल्लास या उल्लास क्या है? भय क्या है और प्रेम क्या है? कायरता क्या है और किस हद तक भयानकता है?

ਹਿਚਕੀ ਡਕਾਰ ਔ ਖੰਘਾਰ ਜੰਮਹਾਈ ਛੀਕ ਅਪਸਰ ਗਾਤ ਖੁਜਲਾਤ ਕਹਾ ਆਨ ਹੈ ।
हिचकी डकार औ खंघार जंमहाई छीक अपसर गात खुजलात कहा आन है ।

हिचकी, डकार, कफ, जम्हाई, छींक, वायु का निकलना, शरीर खुजलाना तथा ऐसी ही अन्य अनेक बातें कहां और कैसे होती हैं?

ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਲੋਭ ਮੋਹ ਅਹੰਮੇਵ ਟੇਵ ਕਹਾਂ ਸਤ ਔ ਸੰਤੋਖ ਦਯਾ ਧਰਮ ਨ ਜਾਨ ਹੈ ।੬੨੩।
काम क्रोध लोभ मोह अहंमेव टेव कहां सत औ संतोख दया धरम न जान है ।६२३।

काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार का स्वरूप क्या है? इसी प्रकार सत्य, संतोष, दया और धर्म की वास्तविकता को नहीं जाना जा सकता। (623)