दिव्य शब्द में मन को लीन करने से गुरु का समर्पित सेवक अपने भीतर भगवान की प्रभा का अनुभव करता है और ऐसी अवस्था में उसे तीनों लोकों और तीनों कालों में होने वाली घटनाओं का ज्ञान हो जाता है।
गुरु-चेतन व्यक्ति की चेतना में दिव्य शब्द के निवास के साथ, वह अपने भीतर दिव्य ज्ञान की चमक का अनुभव करता है। और इस अवस्था में, वह ईश्वर के साथ संबंध स्थापित करता है और स्थायी आनंद का आनंद लेता है। वह तब अज्ञात को समझता है
शब्द में लीन होने से उसे दशम द्वार से नाम-अमृत की निरन्तर धारा का अनुभव होता है और वह निरन्तर उसका रसास्वादन करता रहता है।
उसकी चेतना की यह तल्लीनता उसे सुखदायक और शांति देने वाले भगवान के साथ जोड़ देती है और वह उनके नाम का ध्यान करते हुए लीन रहता है। (७७)