प्रभु के नाम-अमृत के आनंद में डूबा हुआ गुरसिख मन से स्थिर रहता है और अपने आप के प्रति पूरी तरह सचेत रहता है। उसका मन हमेशा प्रभु की याद में लीन रहता है।
जो मनुष्य भगवान के अमृत-रूपी नाम में लीन रहता है, उसे गम की बुद्धि प्राप्त होती है। उच्चतर बुद्धि और भगवान को निरंतर स्मरण करने का उसका परिश्रम उसके मन में ईश्वर के अलौकिक तेज को प्रकट करता है।
जो मनुष्य सच्चे गुरु के पवित्र चरण-कमलों में लीन रहता है, वह भगवान के अक्षय स्रोत से अमृत नाम का पान करता रहता है। इस प्रकार वह अपनी कलुषित बुद्धि का नाश कर देता है।
जो मनुष्य सच्चे गुरु के चरण-कमलों में लीन रहता है, वह माया के प्रभाव से अछूता रहता है। संसार के भौतिक आकर्षणों से विरला ही वैराग्य प्राप्त कर पाता है। (६८)