कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 626


ਕਵਨ ਅੰਜਨ ਕਰਿ ਲੋਚਨ ਬਿਲੋਕੀਅਤ ਕਵਨ ਕੁੰਡਲ ਕਰਿ ਸ੍ਰਵਨ ਸੁਨੀਜੀਐ ।
कवन अंजन करि लोचन बिलोकीअत कवन कुंडल करि स्रवन सुनीजीऐ ।

कौन सी काजल आँखों में लगाकर हम अपने प्रियतम भगवान को देख सकते हैं? कौन सी बालियाँ कानों में पहनकर हम उनकी ध्वनि सुन सकते हैं?

ਕਵਨ ਤੰਮੋਲ ਕਰਿ ਰਸਨਾ ਸੁਜਸੁ ਰਸੈ ਕੌਨ ਕਰਿ ਕੰਕਨ ਨਮਸਕਾਰ ਕੀਜੀਐ ।
कवन तंमोल करि रसना सुजसु रसै कौन करि कंकन नमसकार कीजीऐ ।

कौन सा पान चबाने से जीभ को अपने प्रिय भगवान की महिमा दोहराने में मदद मिलती है? उन्हें नमस्कार करने के लिए हाथों में कौन सी चूड़ियाँ पहननी चाहिए?

ਕਵਨ ਕੁਸਮ ਹਾਰ ਕਰਿ ਉਰ ਧਾਰੀਅਤ ਕੌਨ ਅੰਗੀਆ ਸੁ ਕਰਿ ਅੰਕਮਾਲ ਦੀਜੀਐ ।
कवन कुसम हार करि उर धारीअत कौन अंगीआ सु करि अंकमाल दीजीऐ ।

कौन सी पुष्पमाला उन्हें हृदय में बसा सकती है? कौन सी चोली पहनकर उन्हें हाथों से गले लगा सकती है?

ਕਉਨ ਹੀਰ ਚੀਰ ਲਪਟਾਇ ਕੈ ਲਪੇਟ ਲੀਜੈ ਕਵਨ ਸੰਜੋਗ ਪ੍ਰਿਯਾ ਪ੍ਰੇਮ ਰਸੁ ਪੀਜੀਐ ।੬੨੬।
कउन हीर चीर लपटाइ कै लपेट लीजै कवन संजोग प्रिया प्रेम रसु पीजीऐ ।६२६।

कौन-सा वस्त्र और हीरा पहनकर उन्हें लुभाया जा सकता है? किस विधि से प्रियतम के मिलन का आनन्द लिया जा सकता है? सार यह है कि सभी अलंकरण व्यर्थ हैं। उनके प्रेम का आनन्द लेने से ही उनसे मिलन हो सकता है। (626)