मछली कोई ऐसा बर्तन नहीं है जिसकी सहायता जल कर सके, न ही जल में बोलने या सुनने की क्षमता है जिससे कि वह संकट में पड़ी मछली की सहायता कर सके। इसलिए जब मछली संकट में होती है तो जल उसकी पीड़ा को कम नहीं कर सकता।
मछली नदी के विशाल और तेज़ प्रवाह में रहती है। लेकिन जब वह मछुआरे के लोहे के चारे को निगल जाती है, तो हैरान मछली को उसका प्रिय जल नहीं बचा सकता।
पानी से बाहर निकाले जाने पर एक मछली अपने प्रियतम (जीवन आधार) से अलग होने के कारण जीवन के लिए तड़पती है। लेकिन पानी को मछली की पीड़ा का एहसास नहीं होता।
मछली का पूरा कुल इस एकतरफा प्रेम को युगों से झेल रहा है। लेकिन गुरु और शिष्य का प्रेम हमेशा दोतरफा होता है। गुरु संकट में सिख की मदद करते हैं। लेकिन जो कुल में होते हुए भी सच्चे गुरु का प्रेम त्यागकर, समर्पण करके शिष्य की सेवा करता है।