जिस प्रकार एक पुत्र अपनी समझ, बोध और अपने जीवन की सुरक्षा अपनी मां के भरोसे छोड़ देता है और वह भी अपने बेटे के गुण-दोष के बारे में नहीं सोचती।
जिस प्रकार पति के प्रेम से भरी हुई पत्नी अपने पति का सारा बोझ अपने मन पर उठा लेती है, उसी प्रकार पति भी अपने हृदय में उसके लिए प्रेम और सम्मान का स्थान बनाता है।
जिस प्रकार एक विद्यार्थी शिक्षक को देखकर भयभीत हो जाता है, उसी प्रकार शिक्षक भी इस श्रद्धापूर्ण भय के प्रभाव में उसकी गलतियों को नजरअंदाज कर देता है तथा उससे प्रेम करना नहीं छोड़ता।
इसी प्रकार जो सिख गुरु का शरणागत है, वह अपने हृदय में भक्ति और प्रेम रखकर सच्चे गुरु की शरण में जाता है, सच्चे गुरु उसे परलोक गमन करते समय मृत्यु के दूतों के हाथों में नहीं पड़ने देते। सच्चे गुरु उसे अपने जीवन में स्थान प्रदान करते हैं।