कबित सव्ये भाई गुरदास जी

पृष्ठ - 358


ਗਿਆਨ ਧਿਆਨ ਪ੍ਰਾਨ ਸੁਤ ਰਾਖਤ ਜਨਨੀ ਪ੍ਰਤਿ ਅਵਗੁਨ ਗੁਨ ਮਾਤਾ ਚਿਤ ਮੈ ਨ ਚੇਤ ਹੈ ।
गिआन धिआन प्रान सुत राखत जननी प्रति अवगुन गुन माता चित मै न चेत है ।

जिस प्रकार एक पुत्र अपनी समझ, बोध और अपने जीवन की सुरक्षा अपनी मां के भरोसे छोड़ देता है और वह भी अपने बेटे के गुण-दोष के बारे में नहीं सोचती।

ਜੈਸੇ ਭਰਤਾਰਿ ਭਾਰਿ ਨਾਰਿ ਉਰ ਹਾਰਿ ਮਾਨੈ ਤਾ ਤੇ ਲਾਲੁ ਲਲਨਾ ਕੋ ਮਾਨੁ ਮਨਿ ਲੇਤ ਹੈ ।
जैसे भरतारि भारि नारि उर हारि मानै ता ते लालु ललना को मानु मनि लेत है ।

जिस प्रकार पति के प्रेम से भरी हुई पत्नी अपने पति का सारा बोझ अपने मन पर उठा लेती है, उसी प्रकार पति भी अपने हृदय में उसके लिए प्रेम और सम्मान का स्थान बनाता है।

ਜੈਸੇ ਚਟੀਆ ਸਭੀਤ ਸਕੁਚਤ ਪਾਧਾ ਪੇਖਿ ਤਾ ਤੇ ਭੂਲਿ ਚੂਕਿ ਪਾਧਾ ਛਾਡਤ ਨ ਹੇਤ ਹੈ ।
जैसे चटीआ सभीत सकुचत पाधा पेखि ता ते भूलि चूकि पाधा छाडत न हेत है ।

जिस प्रकार एक विद्यार्थी शिक्षक को देखकर भयभीत हो जाता है, उसी प्रकार शिक्षक भी इस श्रद्धापूर्ण भय के प्रभाव में उसकी गलतियों को नजरअंदाज कर देता है तथा उससे प्रेम करना नहीं छोड़ता।

ਮਨ ਬਚ ਕ੍ਰਮ ਗੁਰ ਚਰਨ ਸਰਨਿ ਸਿਖਿ ਤਾ ਤੇ ਸਤਿਗੁਰ ਜਮਦੂਤਹਿ ਨ ਦੇਤ ਹੈ ।੩੫੮।
मन बच क्रम गुर चरन सरनि सिखि ता ते सतिगुर जमदूतहि न देत है ।३५८।

इसी प्रकार जो सिख गुरु का शरणागत है, वह अपने हृदय में भक्ति और प्रेम रखकर सच्चे गुरु की शरण में जाता है, सच्चे गुरु उसे परलोक गमन करते समय मृत्यु के दूतों के हाथों में नहीं पड़ने देते। सच्चे गुरु उसे अपने जीवन में स्थान प्रदान करते हैं।