सद्गुरु के चरण कमलों की शरण में आने से भक्त का मन कमल के फूल की तरह खिल जाता है। सच्चे गुरु की कृपा से वह सभी के साथ एक जैसा व्यवहार करता है। उसके मन में किसी के प्रति कोई द्वेष नहीं होता।
ऐसा गुरु-चेतन व्यक्ति अपने मन को अविचलित दिव्य संगीत में लगाता है और स्वर्गीय आनंद का आनंद लेते हुए, दशम द्वार में अपने मन को विश्राम देता है।
भगवान के प्रेम में आसक्त होकर उसे अपने शरीर की सुध नहीं रहती। यह ऐसी अद्भुत स्थिति है, जिसे देखकर सभी आश्चर्यचकित हो जाते हैं।
गुरु-शिष्य की आध्यात्मिक परमानंद अवस्था की प्रशंसा भी नहीं की जा सकती। वह चिन्तन से परे है और अवर्णनीय भी है। (३३)